इटावा : समाजवादी पार्टी (सपा) ने एक कड़े फैसले में उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारिणी के सदस्य मनीष यादव उर्फ पतरे को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया है. यह घोषणा इटावा के जिलाध्यक्ष प्रदीप शाक्य उर्फ बबलू द्वारा जारी एक आधिकारिक पत्र के माध्यम से की गई, हालाँकि, निष्कासन के पीछे का सटीक कारण पत्र में स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है. इस कदम ने पार्टी के भीतर चल रहे असंतोष और अनुशासनहीनता के प्रति सपा नेतृत्व के कठोर रुख को उजागर किया है.
मनीष यादव का राजनीतिक सफर दिलचस्प रहा है. वह पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े रहे थे, जिसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. उनकी निष्ठा बदलने के बावजूद, सपा में उन्हें प्रमुखता मिली और 24 सितंबर 2023 को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की संस्तुति पर उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारिणी का सदस्य मनोनीत किया गया था. यह नियुक्ति उनकी पार्टी में बढ़ती हैसियत का प्रमाण थी. इसके अतिरिक्त, मनीष यादव ने सपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में गठबंधन सहयोगी शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था.
जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.
निष्कासन का तात्कालिक कारण हाल ही में महेवा ब्लॉक में हुए कथावाचक विवाद से जुड़ा है. इस घटना के बाद, मनीष यादव ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की थी, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई. उनकी इस टिप्पणी को पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर असंतोष और अनुशासनहीनता के रूप में देखा गया, जिसके बाद से ही यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि पार्टी उनके खिलाफ कोई कठोर कदम उठा सकती है.
यह घटनाक्रम सपा के भीतर किसी भी प्रकार की सार्वजनिक आलोचना के प्रति असहिष्णुता को दर्शाता है, विशेषकर जब वह शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ हो. अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, मनीष यादव ने अपना पक्ष रखा है. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने कोई पार्टी विरोधी गतिविधि नहीं की है. कथावाचक विवाद पर अपनी टिप्पणी का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, “कथावाचक कांड पर जो बात मैंने कही, उस पर आज भी कायम हूं. जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कथा वाचकों को लखनऊ कार्यालय बुलाकर उनसे गाना गाने के लिए कहा, वह मुझे अनुचित लगा.
मैंने जो सही समझा, वही बात मीडिया के सामने रखी. अगर पार्टी को यह बयान अनुशासनहीनता लगता है, तो यह उनका निर्णय है.” मनीष यादव के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी टिप्पणी को नैतिकता और सत्यनिष्ठा के आधार पर किया था, भले ही इसके परिणाम कुछ भी रहे हों.