ओडिशा और छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में 5 सुरक्षाबलों बलों के संयुक्त ऑपरेशन में 1 करोड़ के इनामी नक्सली जयाराम उर्फ चलपति ढेर हो गया है. चलपति के पास ओडिशा और आंध्र प्रदेश की कमान थी. नक्सल आंदोलन में चलपति की एक पहचान तकनीक प्रेमी के रूप में थी. वहीं चलपति पहले बड़े नक्सली थे, जो अपनी पत्नी के साथ जंगल में रहते थे.
पिछले 6 साल में नक्सल हमले को देखते हुए सरकार ने चलपति पर 20 लाख से 1 करोड़ का इनाम बढ़ा दिया था. चलपति पर नए सिरे से नक्सल मूवमेंट में जान फूंकने का आरोप भी था.
नक्सलियों के सरदार चलपति की कहानी
आंध्र प्रदेश के चिंत्तूर जिले के माटेमपल्ली में जन्में जयाराम उर्फ चलपति ने शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव से ही पूरी की थी. चलपति 10वीं तक की पढ़ाई करने के बाद 1990 के दशक में माओवादी आंदोलन से जुड़ गए. पढ़ा-लिखा होने की वजह से उसे सेंट्रल कमेटी का सदस्य बनाया गया.
चलपति इसके बाद नक्सली नेता रामकृष्ण के संपर्क में आ गया. चलपति इसके बाद रामकृष्ण के सहायक नियुक्त किए गए. रामकृष्ण के सानिध्य में रहते हुए उसे जोन का सेक्रेटरी बनाया गया. इसके बाद उसे आंध्र और ओडिशा डिविजन की कमान भी मिली.
चलपति अभी पूरे ईस्ट-साउथ जोन का काम देख रहे थे. कुछ सालों से नक्सल मूवमेंट का वैचारिक काम भी उसी के कंधों पर आ गया था.
चलपति को तकनीक से था खूब प्रेम
चलपति को नक्सल मूवमेंट का प्लानिंग बनाने में महारत हासिल थी. कब कौन सा अटैक करना है, वो चलपति को बखूबी पता था. चलपति तकनीक प्रेमी भी था. पास नए जमाने की तकनीक के बारे में उसे काफी जानकारी थी. अपने समकक्षों और छोटे नेताओं को वो तकनीक के बारे में जानकारी भी देता था.
वरिष्ठ पत्रकार टीएस सुधीर अपने संस्मरण लेख में लिखते हैं- मैं 2001 में जब नक्सली नेता रामकृष्ण से मिलने गया तो यहीं पर चलपति से मेरी पहली मुलाकात हुई थी. उस वक्त भारत में तकनीकी पांव ही पसार था. चलपति को उस सबकी जानकारी थी.
चलपति ने साल 2000 के आसपास नक्सली नेता अरुणा से शादी की थी. दोनों की शादी करीब 16 साल तक चली. इस दौरान दोनों के कई बार सरेंडर करने की खबर सामने आई, लेकिन दोनों नक्सल आंदोलन में रह कर ही अपने वैवाहिक जीवन को पूरा किया.
एक दिन से ज्यादा कहीं नहीं टिकते चलपति
चलपति ने बचने का एक फॉर्मूला खोज लिया था. आमतौर पर नक्सल ऑपरेशन सुबह 4 बजे या उसके आसपास शुरू होता है. चलपति और उनकी पत्नी दोनों 4 बजे से पहले ही अपना ठिकाना बदल देता था.
टीएस सुधीर के मुताबिक दोनों शाम तक अपना ठिकाना बना लेते थे. इसके बाद दोनों खुले आसमान में ही पत्ते पर रात बिताते थे. सुबह 4 बजे से पहले दोनों अपना ठिकाना छोड़ देते थे.
रात को ही दोनों अपनी पूरी दिन की बात करते थे और एक-दूसरे का दुख-सुख शेयर करते थे.
सेल्फी के बाद रडार में, पत्नी के बाद अब खुद ढेर
2016 के जून में आंध्र प्रदेश पुलिस ने आजाद नामक एक नक्सली को गिरफ्तार किया. आजाद की गिरफ्तारी के दौरान पुलिस को एक लैपटॉप मिला. जब इस लैपटॉप को खंगाला गया तो उसमें चलपति और उसकी पत्नी अरुणा की तस्वीर मिली.
इस तस्वीर के बाद से ही चलपति पुलिस और सुरक्षाबलों की रडार में रहने लगा. इस सेल्फी के मिलने के 3 महीने बाद ही अरुणा ओडिशा में हुए एक एनकाउंटर में ढेर हो गई. वहीं अरुणा की मौत के 8 साल बाद अब खुद चलपति भी मारा गया.
कहा जाता है कि पुलिस को अगर चलपति की तस्वीर नहीं मिलती तो उसकी पहचान करना सुरक्षाबलों के लिए कभी आसान नहीं था. इसकी वजह चलपति की पुरानी तस्वीर का होना था. पुलिस के पास 2016 से पहले चलपति की एक पुरानी तस्वीर थी.
6 साल में 80 लाख का इनाम बढ़ा
2018 में चलपति पर 20 लाख का इनाम था, लेकिन 6 साल में ही यह इनाम 20 लाख से बढ़कर एक करोड़ तक पहुंच गया. इतना ही नहीं पिछले 6 साल में चलपति के कई बार मरने की खबर आई, लेकिन हर बार वो बच निकलता था.
हालांकि, इस बार 5 फोर्स के संयुक्त ऑपरेशन में चलपति फंस गया. चलपति के मरने से अब नक्सल आंदोलन ओडिशा और आंध्र में आखिरी दौर की लड़ाई में पहुंच गया है.