नेपाल में Gen-Z के नेतृत्व वाले हिंसक प्रदर्शनों के बाद उपजे राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने मौजूदा संसद को भंग कर दिया है और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने का फैसला लिया है. राष्ट्रपति के साथ सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल की मौजूदगी में Gen-Z समूहों की बैठक में सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने पर सहमति बनी. इसके बाद राष्ट्रपति पौडेल ने कार्की को भी मीटिंग के लिए बुलाया था और उनसे इस जिम्मेदारी को संभालने का अनुरोध किया, जिसे नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने स्वीकार कर लिया.
वह आज रात राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण करेंगी. इसके बाद रात 12 बजे से देश में वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इमरजेंसी लगाने की घोषणा हो सकती है.
बता दें कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपनी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया बैन को लेकर Gen-Z के नेतृत्व में 8 और 9 सितंबर को हुए राष्ट्रव्यापी हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था. Gen-Z प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि मौजूदा संसद को भंग करके देश में अगले राष्ट्रीय चुनावों तक एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाए, जिसे राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने सेना प्रमुख के साथ विचार-विमर्श के बाद स्वीकार कर लिया.
एक छोटा मंत्रिमंडल गठित करने की तैयारी
अंतरिम सरकार के अंतर्गत एक छोटा मंत्रिमंडल गठित करने की तैयारी है. वरिष्ठ अधिवक्ता ओम प्रकाश आर्यल और नेपाल विद्युत प्राधिकरण के पूर्व प्रमुख कुलमान घीसिंग मंत्री बन सकते हैं. gen-z समूहों की तरफ से भी एक या दो प्रतिनिधियों को अंतरिम सरकार में शामिल किया जा सकता है. सुशीला कार्की के शपथ ग्रहण के बाद अंतरिम सरकार की पहली कैबिनेट बैठक राष्ट्रपति भवन में ही होगी, जिसमें नेपाल में संकटकाल की घोषणा, न्यायिक जांच आयोग और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शक्तिशाली जांच आयोग बनाने का फैसला हो सकता है.
नेपाल में हो सकती है इमरजेंसी की घोषणा
देश में वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इमरजेंसी लगाने की घोषणा हो सकती है. अंतरिम सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति आज रात 12 बजे से पूरे नेपाल में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर सकते हैं. नेपाल के संविधान की धारा 273 के मुताबिक अगर देश में किसी भी प्रकार की विपत्ति आती है, युद्ध होता है, प्राकृतिक आपदा आती है, सशस्त्र विद्रोह होता है तो ऐसी परिस्थिति में देश में अधिकतम 6 महीने के लिए इमरजेंसी की घोषणा की जा सकती है. इस दौरान पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी सेना अपने हाथों में ले लेती है.
सुशीला कार्की ने 1979 में विराटनगर में एक वकील के रूप में अपना कानूनी करियर शुरू किया और 2009 में सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनीं. वह 2016 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने अडिग रुख के लिए उन्हें पहचान मिली, विशेष रूप से भ्रष्टाचार के आरोपों में वर्तमान मंत्री जय प्रकाश गुप्ता को दोषी ठहराने और कारावास का आदेश देने के लिए. कार्की ने 1975 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री और 1978 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री पूरी की.
वर्ष 2017 में, उन्हें सत्तारूढ़ गठबंधन (माओइस्ट सेंटर और नेपाली कांग्रेस) द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का सामना करना पड़ा, जिसमें उन पर पुलिस प्रमुख की नियुक्ति जैसे मामलों में पक्षपात और अपने अधिकार का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया गया था. हालांकि, बाद में जनता के दबाव और सुप्रीम कोर्ट द्वारा संसद को प्रस्ताव पर आगे न बढ़ने का अंतरिम आदेश देने के बाद महाभियोग प्रस्ताव वापस ले लिया गया था. इन राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने एक स्वतंत्र और सुधारवादी न्यायाधीश के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखी.