अयोध्या में राम मंदिर की नई शोभा : संत तुलसीदास की प्रतिमा से सजा श्रीराम जन्मभूमि परिसर

अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य अब अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ चला है. रामलला के भव्य मंदिर की आभा और आकर्षण में अब एक नई कड़ी जुड़ गई है. मंगलवार, 15 अप्रैल 2025 को मंदिर परिसर में स्थापित की गई संत तुलसीदास की भव्य प्रतिमा ने समूचे परिसर की शोभा को और भी दिव्य बना दिया है. यह प्रतिमा परिसर में बने यात्री सुविधा केंद्र के पूर्वी प्रवेश द्वार पर लगाई गई है, जहां से गुजरने वाले लाखों श्रद्धालु अब न केवल श्रीराम के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे, बल्कि संत तुलसीदास के दर्शनों से भी कृतार्थ होंगे.

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इस शुभ अवसर पर एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय, निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र, ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा समेत कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही. संत तुलसीदास की प्रतिमा का विधिवत पूजन कर उसका लोकार्पण किया गया। यह आयोजन धार्मिक उल्लास, वेद मंत्रों की गूंज और भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुआ.

 

संत तुलसीदास : रामचरितमानस के रचयिता

संत तुलसीदास न केवल हिंदी साहित्य के महानतम कवि माने जाते हैं, बल्कि वे भक्ति काल की उस धारा के केंद्रबिंदु हैं, जिन्होंने रामकथा को आम जनमानस तक पहुँचाया। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ की रचना कर श्रीराम के आदर्शों को हर वर्ग तक पहुंचाया. ऐसी महान आत्मा की प्रतिमा का श्रीराम जन्मभूमि परिसर में स्थापना होना एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना मानी जा रही है.

ट्रस्ट महासचिव चम्पत राय ने बताया कि यह आयोजन न केवल श्रद्धालुओं के लिए विशेष है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणास्रोत होगा. उन्होंने कहा, “वैशाख कृष्ण द्वितीया, विक्रम संवत 2082 को यह पुण्य कार्य सम्पन्न हुआ, जिसे हम सभी एक अत्यंत शुभ संकेत मानते हैं.

राम मंदिर निर्माण की प्रगति

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कार्य तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है. हाल ही में सोमवार को मंदिर के गर्भगृह के मुख्य शिखर पर कलश स्थापित किया गया, जो निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. यह कलश 240 किलो वजनी है और इसकी ऊंचाई लगभग 3.5 फीट है. यह कार्य वेद मंत्रों के साथ पारंपरिक वैदिक विधि से सम्पन्न किया गया.

मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि मुख्य मंदिर का बाह्य ढांचा लगभग पूरा हो चुका है और शेष कार्य यथाशीघ्र पूर्ण किया जा रहा है. मंदिर के प्रत्येक शिल्पखंड को प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार उकेरा गया है, जिससे यह न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक भी बन रहा है.

 

श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधा केंद्र

परिसर में बन रहे यात्री सुविधा केंद्र को भी अत्याधुनिक और भक्तिपूर्ण वातावरण से सजाया जा रहा है। इसमें भोजनालय, विश्राम स्थल, चिकित्सा कक्ष, जलपान गृह, टॉयलेट्स और सुरक्षा व्यवस्था की सुसज्जित व्यवस्थाएं की गई हैं। संत तुलसीदास की प्रतिमा इसी सुविधा केंद्र के मुख्य द्वार पर स्थापित की गई है। इस स्थान से होकर प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करेंगे, और उनकी यात्रा संत तुलसीदास की वंदना से प्रारंभ होगी।

एकता और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक

संत तुलसीदास की प्रतिमा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता का भी संदेश देती है। रामकथा की लोकप्रियता और उसका प्रभाव भारत की सीमाओं से परे तक देखा गया है। अयोध्या में यह प्रतिमा उस महान परंपरा को सम्मान देने का प्रयास है, जिसने राम को जन-जन के हृदय में प्रतिष्ठित किया।

ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा ने इस अवसर पर कहा, आज का दिन न केवल श्रीराम जन्मभूमि के लिए, बल्कि संपूर्ण भारत के लिए ऐतिहासिक है। संत तुलसीदास की प्रतिमा एक ऐसा केंद्रबिंदु बनेगा, जो श्रद्धालुओं को भक्ति, शांति और सदाचार की प्रेरणा देगा.

 

भविष्य की योजनाएं

राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा आगामी कुछ महीनों में मंदिर का लोकार्पण समारोह भव्य रूप से आयोजित किया जाएगा. अनुमान है कि 2025 के अंत तक संपूर्ण मंदिर परिसर को भक्तों के लिए खोल दिया जाएगा. मंदिर के साथ-साथ एक संग्रहालय, शोध केंद्र, गौशाला और अन्य धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण की भी योजनाएं बनाई जा रही हैं.

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का यह विशाल परिसर न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि अयोध्या को एक वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा. संत तुलसीदास की प्रतिमा की स्थापना श्रीराम जन्मभूमि के उस भाव को और सशक्त बनाती है, जहाँ आस्था, परंपरा और संस्कृति का समागम होता है. यह प्रतिमा न केवल एक शिल्प है, बल्कि यह भक्ति और साहित्य की एक ऐसी जीवंत धरोहर है, जिसे हर रामभक्त नतमस्तक होकर निहारेगा. राम मंदिर का यह चरण सभी श्रद्धालुओं के लिए एक नया उत्सव बनकर आया है – आस्था की, आभार की और आध्यात्मिक ऊर्जा की.

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