गोंडा (उत्तर प्रदेश) :जहां लोग अपने स्वार्थ में बेजुबानों की पीड़ा को अनदेखा कर देते हैं, वहीं गोंडा के मोहल्ला गोलागंज निवासी करीब 70 वर्षीय मुन्ना साहू उन चुनिंदा लोगों में हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के बीते चार दशकों से पशु-पक्षियों की सेवा में जुटे हैं.शहर के कोने-कोने में 70 पक्के नांद बनवाकर हर सुबह चार बजे खुद उनमें पानी भरना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है.
चोट अगर किसी बेजुबान को लगती है, तो दर्द मुन्ना साहू को होता है। सड़क किनारे घायल पड़ा कोई जानवर हो या प्यास से तड़पता पक्षी—मुन्ना साहू उसे अपना मानकर न केवल उपचार कराते हैं बल्कि अंतिम संस्कार तक विधिपूर्वक करते हैं। वो कहते हैं, “शायद भगवान ने मुझे इसी सेवा के लिए भेजा है.“
मुन्ना साहू की इस सेवा यात्रा की शुरुआत आसान नहीं रही। पैसे की कमी थी, लेकिन जुनून की कोई सीमा नहीं। धीरे-धीरे कुछ शुभचिंतकों का साथ मिला और कारवां बढ़ता गया. कोरोना काल में जब इंसान खुद संकट में थे, तब भी मुन्ना साहू बेजुबानों के लिए लाई और भोजन जुटा रहे थे.उन्होंने लोगों से जूठा खाना फेंकने की बजाय जानवरों को देने की अपील की.
हर त्रयोदशी को अयोध्या जाकर बंदरों को लाई, केला और मूंगफली खिलाना भी उनकी सेवा का हिस्सा है.अब उनकी प्रेरणा से राजन श्रीवास्तव, विवेक मणि और राजू शुक्ला जैसे युवा भी इस पुनीत कार्य में सहयोग कर रहे हैं.
मुन्ना साहू का जीवन संदेश देता है—“अगर बेजुबानों को अपनाओ, तो वो भी आपको अपनों सा मानते हैं.“ गोंडा के बेजुबान शायद बोल नहीं सकते, पर उनकी आंखों में मुन्ना साहू के लिए जो अपनापन झलकता है, वो शब्दों से कहीं ज़्यादा गहरा है.