यूपी में अब अलीगढ़ की जामा मस्जिद पर विवाद, मुगलों के वंशज ने जताया मालिकाना हक

अलीगढ़ की शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हो गया है. अलीगढ़ निवासी भ्रष्टाचार विरोधी सेना के अध्यक्ष और आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव ने मस्जिद को लेकर एक वाद दायर किया है. जिसमें उन्होंने दावा किया है कि शाही जामा मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर बनी हुई है.

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पंडित केशव देव ने इस वाद में शाही जामा मस्जिद के मुतवल्ली को दूसरा पक्ष बनाया था, लेकिन अब इस मस्जिद के मालिकाना हक लेकर एक नया विवाद सामने आया है. मुगल वंशजों ने शाही जामा मस्जिद पर मालिकाना हक जताया गया है. इस संबंध में तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से आई एक चिट्ठी से मामला गर्म हो गया है.

मुगल शासक बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तुसी के जरिये शाही जामा मस्जिद मामले में खुद को तीसरा पक्षकार बताते हुए एक चिट्ठी अलीगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्ता इंफ्राहिम हुसैन को भेजी है. जिसमें उन्होंने मस्जिद से जुड़े हुए कागजात और खुद को मुगलों के वंशज होने के सबूत पेश किए हैं.

‘मुगलकाल में बनी है मस्जिद’

दावा किया जा रहा है कि एक चिट्ठी अलीगढ़ पहुंची है. इस पत्र में शाही जामा मस्जिद की सुनवाई के दौरान तीसरे पक्षकर के रूप में 15 फरवरी को इफ्राहिम हुसैन के जरिये दावा ठोका जाएगा.

वरिष्ठ अधिवक्ता इफ्राहिम हुसैन ने एबीपी लाइव से बातचीत में बताया कि अलीगढ़ की शाही जामा मस्जिद का निर्माण मुगल शासन काल में हुआ था. जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह मुगलों की थी. उन्होंने कहा कि उस दौरान बनी हुई इस मस्जिद को लेकर तब से लेकर आज तक कोई भी वाद विवाद सामने नहीं आया, लेकिन अब कुछ लोग इस मस्जिद को सरकारी भूमि बता रहे हैं.

मुगल वंशज ने ठोका दावा

इफ्राहिम हुसैन ने बताया कि मुगलों के शासनकाल में इस मस्जिद पर उनका हक हुआ करता था, लेकिन जब उनके वंशज तेलंगाना चले गए तो कुछ लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए इस मस्जिद पर दावा कर दिया. उन्होंने बताया कि मस्जिद के असली वंशज प्रिंस ने चिट्ठी के माध्यम से यहां कागजात भेजे हैं. इसके माध्यम से मस्जिद के असली हकदार और मुगलों के वंशजों के रूप में 15 फरवरी को इस पर दावा पेश करेंगे.

वरिष्ठ अधिवक्ता इफ्राहिम हुसैन ने कहा कि इससे बड़ा सबूत किसी को क्या चाहिए कि भारत पर जान न्योछावर करने वाले शहीदों की कब्र भी इस मस्जिद में बनी हुई है, देश में कोई ऐसी जगह नहीं है जिसमें मस्जिद में शहीदों की कब्र बनी हुई हो.

क्या है मस्जिद का इतिहास

मुगलकाल में मुहम्मद शाह (1719-1728) के शासनकाल में कोल के गवर्नर साबित खान ने 1724 में इस मस्जिद का निर्माण शुरू कराया था. 1728 में मस्जिद बनकर तैयार हो गई थी, जबकि जामा मस्जिद में 1857 की क्रांति के 73 शहीदों की कब्रें भी हैं. इस पर भारतीय पुरातत्व विभाग कई साल पहले सर्वे भी कर चुका है.

यह अलीगढ़ की सबसे पुरानी और भव्य मस्जिदों में से एक है, लेकिन अब मुगल शासक बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तुसी के जरिये चिट्ठी के माध्यम से 15 फरवरी को तीसरे पक्षकार के रूप में दावा ठोंकने के लिए कागजात भेजे हैं. जिसको कोर्ट के समक्ष अगली सुनवाई पर पेश किए जाएंगे.

इससे पहले पंडित केशव देव ने पिछले दिनों सीनियर सिविल जज के न्यायालय में वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने जामा मस्जिद को प्राचीन हिंदू मंदिर होने का दावा किया था. पंडित केशव देव ने दावा किया है कि मस्जिद का निर्माण सरकारी जमीन पर किया गया है, इस मामले में उन्होंने मस्जिद मुतव्वली एम सूफियान को प्रतिवादी बनाया है. फिलहाल इस मामले में 15 फरवरी को कोर्ट में सुनवाई होनी है.

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