अब बिहार में नहीं खा सकेंगे मछली! नीतीश सरकार ने पकड़ने पर लगाया बैन, क्यों लेना पड़ा ये फैसला?

250 साल पुराने पूर्णिया जिला में पहले 200 से ज्यादा प्रजाति की मछलियां हुआ करती थी. मगर जागरूकता न होने के चलते मछली की प्रजातियां घटती जा रही हैं. पूर्णिया सीमांचल का यह इलाका गंगा, कोसी, महानंदा, पनार, मेची, सौरा नदी से घिरा हुआ हैं. सभी नदियों की अलग-अलग प्रकार की मछलियों की विशेषता हैं. यहां पाए जाने वाले मछलियों की उपलब्धता पर सीमांचल के कई गांवों का नामकरण भी हुआ है, जैसे-पोठिया, सिंघिया, कबैया, रहुआ, मांगुर जान और बुआरी.

Advertisement

मगर अब स्थानीय मछली विलुप्त होने की कगार पर है. जिससे इन गांवों की पहचान और नाम खतरे में है. अभी पूर्णिया सहित सीमांचल का यह इलाका आंध्रा और बंगाल के मछली पर निर्भर है. वहीं मनुष्य की आबादी के हिसाब से मछली की उपलब्धता और रोजगार सृजन के लिए सीमांचल के इन इलाकों में सरकार ने मछली संरक्षण पहल की शुरूआत की है. जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ. जय शंकर ओझा ने बताया कि बिहार सरकार ने जून, जुलाई और अगस्त महीने में मछली मारने पर प्रतिबंध लगा रखा है.

3 महीने तक मछली मारने पर प्रतिबंध

यह 3 महीने मछलियों के प्रजनन का समय होता है. जिसके बाद मछली मिलने का संतुलन बना रहता हैं, साथ ही विलुप्त हो रहीं प्रजातियों की मछली का संरक्षण भी होता है. अगर मछुआरे और आम लोग इसके बारे में जागरूक नहीं होंगे तो धीरे-धीरे यहां से मछलियों के प्रजाति खत्म हो जाएगी. उन्होंने बताया कि मछुआरे 3 महीने मछली न मारे इसके लिए सरकार उन्हें 4500 रुपये की आर्थिक मदद दे रही है.

सरकार ने लोगों से की खास अपील

इसी के साथ सरकार ने अमलोगों से भी अपील की है कि वह तीन महीने तक मछली न खाएं और आने वाली पीढ़ियों के लिए विलुप्त हो रही प्रजाति की मछली को संरक्षित करने में सहयोग करें. बता दे कि पूर्णिया जिले में 6000 हेक्टेयर से अधिक जल स्रोतों में मत्स्य पालन हो रहा है. इन स्रोतों से हर साल 27 हजार मीट्रिक टन मछलियां पैदा हो जाती है. बावजूद यहां के लोग बंगाल और आंध्र प्रदेश के मछली पर निर्भर हैं.

सरकार हर साल लाखों मछली जीरा नदियों में छोड़ रहे हैं ताकि मछली का संरक्षण हो सके, मगर सबसे ज्यादा मछुआरे और आम लोगों को इसके प्रति जागरूक होना होगा.

Advertisements