मतांतरण और मानव तस्करी के मामले में जेल में निरुद्ध दो नन प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और युवक सुखमन मंडावी ने बुधवार को सत्र न्यायाधीश अनीष दुबे के न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन लगाया। न्यायालय ने जमानत आवेदन का निराकरण करते हुए कहा कि दुर्ग क्षेत्र में हुए मानव तस्करी से संबंधित प्रकरणोें की सुनवाई के लिए बिलासपुर में न्यायालय बना हुआ है।
न्यायालय ने आोपियों की ओर से जमानत आवेदन लगाने वाले अधिवक्ता को बिलासपुर के विशेष न्यायालय में आवेदन लगाने कहा। प्रकरण के विवेचना अधिकारी को भी न्यायालय ने फटकार लगाई है। न्यायालय ने विवेचना अधिकारी से पूछा कि मानव तस्करी की मामले में अपराध दर्ज करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति ली गई है या नहीं। इस पर विवेचना अधिकारी ने अनुमति नहीं लिए जाने की जानकारी दी।
यह है मामला
प्रार्थी रवि निगम ने 25 जुलाई 2025 को जीआरपी दुर्ग में शिकायत की थी कि दो नन प्रीति मैरी व वंदना फ्रांसिस एवं युवक सुखमन मंडावी नारायणपुर की तीन लड़कियों को उनके क्षेत्र से बहला फुसलाकर मतांतरित करने एवं नौकरी का प्रलोभन देकर आगरा ले जा रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के विरोध व शिकायत पर जीआरपी दुर्ग ने प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और सुखमन मंडावी के विरुद्ध 143 बीएनएस एवं धारा 4 छग धर्म स्वतंत्रय अधिनियम 1968 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया।
मामले में जीआरपी ने गिरप्तार तीनों आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया था। उक्त मामले में केंद्रीय जेल दुर्ग में निरुद्ध आरोपियों ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से मंगलवार को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी द्विजेन्द्र नाथ ठाकुर के अदालत में जमानत के लिए आवेदन लगाया था। जिसे न्यायालय ने सुनवाई के बाद खारिज गया था। इसके बाद बुधवार को सत्र न्यायालय में आवेदन लगाया गया। यहां प्रस्तुत जमानत आवेदन पर प्रकरण के प्रार्थी रवि निगम ने आपत्ति लगाया।
न्यायालय परिसर में तैनात रही पुलिस
मतांतरण के मामले में आरोपियों के सत्र न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन लगाए जाने की जानकारी मिलने पर बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के सदस्य बड़ी संख्या में न्यायालय परिसर के बाहर एकत्रित होने लगे। स्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय परिसर में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया। सामने बेरीकेडिग भी किया गया था। जमातन आवेदन पर सुनवाई होने तक किसी भी बाहरी व्यक्ति को न्यायालय के भीतर प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था।