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ओल्ड पेंशन स्कीम बनाम 8वां वेतन आयोग: क्या थमेगी विवाद की आग? 5 पॉइंट्स में जानें”

मोदी सरकार ने 8वें वेतन आयोग के गठन की सिफारिश की है. यह सिफारिश ऐसे वक्त में की गई है, जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं. 8वें वेतन आयोग के लागू करने के पीछे कई वजहें बताई जा रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि वेतन आयोग के जरिए सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम की आग को कम करने में जुटी है.

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यही वजह है कि 10 साल में पहली बार मोदी सरकार ने वेतन आयोग के गठन की सिफारिश की है. दिलचस्प बात है कि अटल और मोदी के कुल 17 साल के कार्यकाल में पहली बार वेतन आयोग का गठन किया गया है.

ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस क्या है?

2004 या उससे पहले तक कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद सरकार उसे हर महीने पेंशन देती थी. सरकारी भाषा में इसे ओल्ड पेंशन स्कीम कहा जाता है. इसमें रिटायर होने वाले कर्मचारियों को उनके आखिरी वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती थी.

ओल्ड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उनके परिजनों को पेंशन की राशि दी जाती थी, लेकिन मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया. सरकार ने इसके बदले न्यू पेंशन स्कीम और यूनिफाइट पेंशन स्कीम व्यवस्था लागू कर दी.

धीरे-धीरे सुलग रही है ओपीएस की आग

साल 2022 में पहली बार ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा सियासी गलियारों में गूंजा. समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया. सपा को यूपी विधानसभा चुनाव में जीत तो नहीं मिली, लेकिन उसे बढ़त जरूर मिल गई.

2022 के हिमाचल चुनाव में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया. पार्टी को इसका फायदा हुआ और ओल्ड ग्रैंड कांग्रेस सरकार में आ गई. हिमाचल में सरकार ने ओपीएस स्कीम लागू भी किया. 2023 के कर्नाटक चुनाव में भी ओपीएस बड़ा मुद्दा बना.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ तेलंगाना के चुनाव में भी ओल्ड पेंशन स्कीम को मुद्दा बनाने की कोशिश हुई, लेकिन इन राज्यों में महिलाओं के लिए शुरू की गई स्कीम ने ओपीएस की धार को कुंद कर दिया.

2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने ओपीएस के राग को छेड़ा. कांग्रेस ने ओपीएस को फिर से बहाल करने के लिए एक कमेटी का गठन भी किया था.

लोकसभा के तुरंत बाद यूपीएस की घोषणा

केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के ठीक बाद ओल्ड पेंशन स्कीम और न्यू पेंशन स्कीम के बवाल को खत्म करने के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम की शुरुआत की. सरकार ने कहा कि यह ओपीएस की तरह ही है. हालांकि, कर्मचारी संगठनों ने इसका खुलकर विरोध किया.

ओपीएस को लेकर प्रदर्शन करने वाले संगठनों का कहना था कि अगर यूपीएस भी ओपीएस की तरह ही है, तो फिर उसे लागू क्यों नहीं करते? मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और बिहार जैसे राज्यों में प्रदर्शन हो रहे हैं.

नवंबर 2024 में दिल्ली में कर्मचारी संगठनों ने बड़ा कार्यक्रम आयोजन किया था, जिसमें कर्मचारियों ने ओपीएस बहाली का मुद्दा उठाया था.

ऐसे में सरकार के 8वें वेतन आयोग के गठन को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि सरकार इसके जरिए पूरी तरह से ओल्ड पेंशन स्कीम की आग को खत्म करना चाहती है.

यही वजह है कि सरकार के इस फैसले का तुरंत ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संगठन ने भी स्वागत किया.

अब सवाल- कर्मचारी क्यों अहम है?

1. पीआरएस लेजेस्लेटिव ने केंद्रीय वित्त आयोग के हवाले से बताया है कि देश में वर्तमान में 33 लाख सरकारी कर्मचारी हैं. इसी तरह 52 लाख केंद्रीय पेंशनधारक हैं. अगर 52 लाख पेंशनधारक को सिर्फ उनके एक आश्रित से भी जोड़ा जाए, तो यह संख्या करीब 1 करोड़ 4 लाख के आसपास बैठता है.

इसी तरह केंद्रीय कर्मचारियों का हिसाब-किताब लगाया जाए, तो यह संख्या भी 60 लाख के पार पहुंच जाती है. राज्यवार बात की जाए तो यूपी में इन कर्मचारियों की संख्या कुल संख्या का 10 फीसद है. इसी तरह बिहार में 2 प्रतिशत सेंट्रल एम्पलॉय रहते हैं.

चुनावी राज्य दिल्ली में सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों की संख्या करीब 9 लाख है,जो दिल्ली की 20 सीटों पर असरदार हैं.

2. केंद्रीय कर्मचारी चुनाव कराने और सरकार के नीतिगत फैसलों का प्रचार करने में अहम भूमिका निभाते हैं. अगर वे नाराज रहते हैं तो इसका नुकसान भविष्य में सत्ताधारी पार्टी को हो सकता है. कर्मचारियों को साधे रखने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है.

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