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अब शेयर के बदले मिलेगा 1 करोड़ का लोन… RBI ने दिया निवेशकों को शानदार मौका!

भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. आरबीआई ने लगातार दो मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक में रेपो रेट को अनचेंज रखा है. हालांकि उससे पहले केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में लगातार 3 बार कटौती की थी. अभी रेपो रेट 5.5 फीसदी पर है. इस फैसले के दौरान रिजर्व बैंक ने लोन को लेकर भी एक बड़ा फैसला लिया है.

कर्ज में सुधार और कैपिटल मार्केट में भागीदारी को बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़ा कदम उठाया है. रिजर्व बैंक ने शेयरों के बदले बैंक लोन की लिमिट बढ़ा दी है. अब हर उधारकर्ता 20 लाख रुपये की जगह पर 1 करोड़ रुपये का लोन ले सकता है.

RBI का ये कदम फाइनेंस तक पहुंच को आसान बनाने और प्राइवेट सेक्‍टर की गति को बढ़ाने के उद्देश्‍य से किया गया व्‍यापक सुधारों में से एक है. लोन अमाउंट में 5 गुना ग्रोथ 22 उपायों वाले सुधार पैकेज का हिस्‍सा है, जिसमें IPO फंडिंग लिमिट को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये करना और लिस्‍टेड लोन इक्विटीज पर लोन देने पर नियामक सीमा को हटाना भी शामिल है.

नई क्रेडिट लाइन खुलने की उम्‍मीद
इस बदलाव से रिटेल इन्‍वेस्‍टर्स, HNI और पूंजी बाजार परिसंपत्तियों का लाभ उठाने के इच्छुक कॉर्पोरेट्स के लिए नई क्रेडिट लाइन खुलने की उम्‍मीद है. RBI गवर्नर संजय मल्‍होत्रा ने कहा कि इन उपायों से बैंकों द्वारा कैपिटल लोन देने का दायरा बढ़ेगा और उत्‍पादक उधारी को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही फंडिंग स्थिरता भी बनी रहेगी.

केंद्रीय बैंक हाई क्‍वालिटी वाले इंफ्रा प्रोजेक्‍ट के लिए NBFC लोन पर जोखिम भार को कम करके इंफ्रा फंडिंग की लागत को कम करने के लिए भी काम कर रहा है. इसी क्रम में RBI 2016 के उस स्‍ट्रक्‍चर को भी वापस ले रहा है, जिसने 10 हजार करोड़ से ज्‍यादा बैंक लोन वाले बड़े कर्जदारों को लोन देने को कम किया था, जिससे लोन उपलब्‍धता और बढ़ गई है.

आरबीआई ने नहीं बदला रेपो रेट
इस लोन सपोर्टिव बदलाव के बाद भी RBI ने रेपो रेट को 5.5% पर अनचेंज रखा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि मॉनिटरी पॉलिसी सपोर्ट में तो बना हुआ है, लेकिन वह लोन बंटवारे और संरचनात्‍मक सुधारों पर फोकस कर रहा है.

सही समय पर लिया गया ये फैसला
बैंकिंग क्षेत्र के मजबूत बुनियादी ढांचे (सीआरएआर 17.5% और जीएनपीए मात्र 2.22%) के साथ लोन बढ़ाने के उपायों को समयानुकूल माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार तनाव और अस्थिर पूंजी प्रवाह से जूझ रही है.

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