मध्य प्रदेश के दमोह जिल में भारी बारिश के बाद नदी-नाले उफान पर हैं. वहीं एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे लोग चमत्कार या भगवान की इच्छा मान रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इसे भगवान की नाराजगी बता रहे हैं. दरअसल, एक नदी किनारे गणेश प्रतिमा को स्थापित किया गया था लेकिन तेज बारिश के कारण नदी में बाढ़ आने और कटाव होने के कारण गणपति की मूर्ति नदी में विसर्जित हो गई. जिसके बाद से ये बात इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है.
मामला दमोह जिले के हटा से सामने आया है. जहां सुनार नदी के नावघाट पर पिछले कई वर्षों से गणेश उत्सव के दौरान विशाल गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है. हटा और आसपास के इलाकों के साथ प्रदेश के कई हिस्सों से लोग यहां विराजमान गणपति महाराज के दर्शन पूजन करने आते हैं. कई तरह के आयोजन होते है. भव्य प्रतिमा को नदी के घाट पर बाकायदा पंडाल बनाकर स्थापित किया जाता है. वहीं दस दिन बाद यानी अनन्त चतुर्दशी के दिन धूमधाम से गणपति बप्पा को इसी सुनार नदी में विदाई देकर विसर्जित किया जाता है.
क्या है पूरा मामला?
बप्पा की विदाई के पल बेहद भावुक होते है. सैकड़ो आंखों को नम होते देखा जा सकता है. लेकिन इस बार अनन्त चतुर्दशी के पहले ही महज चार दिन में ही गणपति जी का विसर्जन हो गया. ये विसर्जन उनके भक्तों ने नहीं किया बल्कि बप्पा ने खुद को सुनार नदी में समाहित कर लिया. दरअसल, हटा इलाके में भीषण बारिश के चलते बाढ़ जैसे हालात हैं. सुनार नदी का जलस्तर अचानक बढ़ा और उसने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. नदी के जिस घाट पर गणपति जी को ऊंचाई पर विराजमान किया गया बाढ़ का पानी उस लेवल पर भी आ गया.
देखते ही देखते में नदी में समा गए गणपति
समिति के लोगों ने जब सुनार नदी का रौद्र रुप देखा तो वो समझ गए कि जलस्तर कम नहीं होने वाला है. फिर क्या था, आनन-फानन में घाट पर बनाया गया पंडाल डेकोरेशन लाइटिंग सब कुछ खोल लिया गया, लेकिन अपनी जगह पर विराजमान गणपति जी को किसी ने हाथ नहीं लगाया और वो वहीं स्थापित रहे. बाढ़ और बारिश के बीच भी लोग गणपति जी की प्रतिमा को निहारते रहे और करीब दो घंटे में इस तेजी के साथ सुनार नदी का जल स्तर बढ़ा की विशाल प्रतिमा नदी के जल में समाहित हो गई. ये दुर्लभ नजारा जिसने भी देखा वो रोमांचित तो हुआ ही साथ ही लोग इसे चमत्कार मानते रहे. शायद लोगों ने इसके पहले ऐसा नजारा कभी नही देखा था और न ही सुनार नदी का इस तरह से बढ़ा हुआ जल स्तर देखा था.