पत्नी का एक फोन कॉल और चली गई जान… प्रतापगढ़ में जिला समाज कल्याण अधिकारी की मौत पर खूब हुआ ड्रामा

प्रतापगढ़ जिले के केशवराय गांव में कुछ ऐसा हुआ कि हर किसी को सन्न कर दिया. जिस घर में खुशी और उम्मीदों के दीप जलने चाहिए थे, वहां मातम छा गया. आशीष कुमार सिंह (40 वर्ष), जो आज़मगढ़ जिले में जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर तैनात थे, ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. वजह बताई जा रही है पत्नी से विवाद. फोन पर पत्नी से बात के बाद वह कमरे में एक और पंखे से झूल कर जान दे दी. इसके बाद जब पत्नी घर पहुंची तो वहां खूब हो हल्ला हुआ. घर वालों ने पत्नी को खूब खरी खोटी सुनाई.

होनहार छात्र से अधिकारी तक का सफर

आशीष सिंह अपने गांव और परिवार के लिए हमेशा गर्व का कारण रहे. बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी, उन्होंने लगन और मेहनत से सफलता की सीढ़ियां चढ़ीं. पहली नौकरी उन्हें खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में बेसिक शिक्षा विभाग में मिली थी. कड़ी मेहनत और तैयारी के बाद उन्होंने पीसीएस परीक्षा पास की और लगभग दो साल पहले उन्हें जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर आज़मगढ़ में तैनाती मिली. परिवार और गांव वालों को उम्मीद थी कि आशीष का भविष्य सुनहरे रास्तों पर आगे बढ़ेगा, लेकिन अचानक उनकी मौत ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया.

शादी और पारिवारिक जीवन

करीब 10 साल पहले उनकी शादी सुल्तानपुर जिले की रहने वाली एक युवती से हुई थी. दोनों का एक बेटा भी है, जो पांच साल का है. बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों से उनके वैवाहिक रिश्तों में खटास आ गई थी. लगभग तीन महीने से पत्नी मायके में रह रही थी. परिवार के लोगों ने कई बार सुलह-सफाई की कोशिश की, मगर मामला शांत नहीं हुआ. शनिवार को आशीष छुट्टी लेकर प्रतापगढ़ स्थित अपने गांव पहुंचे थे. उम्मीद थी कि कुछ दिन घर में रहकर सुकून मिलेगा और हालात सामान्य हो जाएंगे. लेकिन तकदीर ने जैसे पहले ही कुछ और तय कर रखा था.

आखिरी फोन कॉल बना मौत का कारण

सुबह आशीष आज़मगढ़ ड्यूटी पर जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी पत्नी से फोन पर बातचीत हुई. कहा जा रहा है कि बातचीत के दौरान दोनों के बीच तीखा विवाद हो गया. फोन कटते ही आशीष चुपचाप अपने कमरे में चले गए. कुछ देर तक जब कमरे से कोई हलचल नहीं हुई तो परिजनों को शक हुआ. आवाज लगाई गई, दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. आखिरकार दरवाजा तोड़ा गया और जो दृश्य सामने आया, उसने सबको हिलाकर रख दिया. आशीष फांसी के फंदे से लटक रहे थे.

पुलिस जांच और परिजनों का दर्द

सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची. शव को नीचे उतारकर कब्जे में लिया गया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. घटना की खबर फैलते ही गांव में लोगों की भीड़ जुट गई. हर किसी की आंखें नम थीं. कोई विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि हंसमुख और जिम्मेदार अधिकारी आशीष ने इतना बड़ा कदम उठा लिया. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. पिता का सहारा छिनने से बेटा मासूमियत से सबको देख रहा था, मानो पूछ रहा हो- पापा कहां चले गए ?

समाज और व्यवस्था पर सवाल

इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या वैवाहिक जीवन की कड़वाहट इतनी गहरी हो सकती है कि एक पढ़ा-लिखा, समझदार और जिम्मेदार अफसर मौत को गले लगाने पर मजबूर हो जाए? आशीष की आत्महत्या न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है. रिश्तों में छोटी-छोटी दरारें भी बड़े हादसों का रूप ले सकती हैं. अधिकारी वर्ग, जो दूसरों की समस्याएं सुलझाने में दिन-रात मेहनत करता है, खुद अपने जीवन की जटिलताओं से जूझता रह जाता है.

गांव में मातम, विभाग में सन्नाटा

पूरे केशवराय गांव में मातम पसरा है. हर कोई आशीष को याद कर रहा है. उनके सहकर्मियों और विभागीय अधिकारियों में भी गहरा सदमा है. कई लोग उन्हें एक सख्त लेकिन संवेदनशील अधिकारी मानते थे. विशेषज्ञ मानते हैं कि मानसिक तनाव या पारिवारिक कलह की स्थिति में काउंसलिंग और परामर्श सबसे जरूरी होता है.

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