हमारा देश विश्वगुरु तभी बनेगा जब हम धर्म और अध्यात्म में आगे बढ़ेंगे… बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को नागपुर में कहा कि अगर हमारा देश 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन भी जाए, तो दुनिया के लिए यह कोई नई बात नहीं होगी, क्योंकि ऐसे कई अन्य देश भी हैं. अमेरिका और चीन भी अमीर हैं. कई अमीर देश हैं. कई ऐसे काम हैं जो दूसरे देशों ने किए हैं, हम भी करेंगे, लेकिन दुनिया के पास अध्यात्म और धर्म नहीं है, जो हमारे पास है. नागपुर में श्री पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर के दर्शन के बाद सरसंघचालक मोहन भागवत ने सभा को संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि दुनिया इसके लिए हमारे पास आती है. जब हम इसमें (धर्म और अध्यात्म में) बड़े हो जाते हैं, तो दुनिया हमारे सामने झुकती है और हमें विश्वगुरु मानती है. हमें हर क्षेत्र में प्रगति करनी चाहिए, लेकिन हमारा देश सही मायने में विश्वगुरु तभी माना जाएगा जब हम इस क्षेत्र (धर्म और अध्यात्म) में आगे बढ़ेंगे

उन्होंने कहा कि हमें भगवान शिव की तरह बनना होगा, जो वीर हैं और सभी को समान रूप से देखते हैं… वे थोड़े में ही खुश हो जाते हैं और दुनिया की समस्याओं का समाधान करते हैं.

अपने लिए कुछ पाना शिव का भाव नहीं है

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमने इतने सालों तक कड़ी मेहनत की है. अब अच्छे दिन आ गए हैं तो हमें भी कुछ मिलना चाहिए. यह शिव का भाव नहीं है. अपने लिए कुछ पाना शिव का भाव नहीं है. इसके विपरीत, हमें विष को हलाल की तरह स्वीकार कर लेना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अगर हमें समाधान चाहिए, तो इस प्रवृत्ति को बदलना होगा. भगवान शिव की शक्ति अपार है. वे देवों के देव हैं. मानव को ईश्वर तक पहुंचने के सभी मार्ग उन्हीं से निकले हैं। इतनी शक्ति होने के बावजूद, वे शिव-विरागी भाव से रहते हैं. वे अपने लिए कुछ नहीं करते. भौतिक जीवन का भोग दूसरों के लिए है. आदर्श ही परम त्याग है.

उन्होंने कहा कि हम दुनिया की भलाई के लिए जहर पीते थे. वरना आजकल बहुत से लोग सवाल करते हैं कि हमने इतने सालों तक इतनी मेहनत क्यों की? अब कुछ तो मिले. शिव का स्वभाव नहीं है कि हमें कुछ मिले. हमें कुछ नहीं चाहिए. जो भी जायज है, वो उन्हें दे दो. जो भी तुम्हें परेशान करता है. जो भी तुम्हारे लिए खतरनाक है. हम उसे अपने ऊपर ले लेते हैं. ऐसा जीवन जीने की बहुत जरूरत है.

मनुष्य का लोभ ही मुसीबतों का कारण है

उन्होंने कहा कि मनुष्य का लोभ ही मुसीबतों का कारण है, मनुष्य की कट्टरता और घृणा ही क्रोध, घृणा, लड़ाई-झगड़े और युद्धों का कारण है. एक स्वार्थी रवैया है कि जो दूसरों को नहीं मिलता, वही मुझे चाहिए, कोई बात नहीं. लोगों को नीचा दिखाना, यही मानव स्वभाव का काला पक्ष है. उन्होंने कहा, “अगर हमें समाधान चाहिए, तो इस रवैये को बदलना होगा.”

उन्होंने कहा कि शिव की आराधना का अर्थ है इस प्रवृत्ति को बदलना. मुझे कुछ न चाहने का भाव चाहिए. मुझे सरलता से जीने में सक्षम होना चाहिए. मेरे अंदर करने की भावना होनी चाहिए, जो शंकर की है. शिव को भोले इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे सबका कल्याण करते हैं. एक व्यक्ति जो पूरी दुनिया के मामलों से अवगत है, वह समझता है कि उसे कभी-कभार होने वाले दर्शन से छुटकारा पाना है, लेकिन मन में कोई बैर या घृणा नहीं होनी चाहिए. सभी के लिए प्रेम होना चाहिए. इसे बनाए रखना बहुत कठिन है, लेकिन शिव में इसे बनाए रखने की क्षमता है. इसीलिए सभी देवता उनकी पूजा करते हैं. हमें दुनिया में सभी के लिए उपयोगी होना चाहिए,

उन्होंने कहा कि सभी विरोधाभासी बातों को मिलाकर सामंजस्य की नई पद्धति कैसे खोजी जाए, अमृत मंथन से रत्न तो निकलते हैं, लेकिन उसमें हलाहल जैसा विष भी होता है. परंपरागत रूप से हम उस विष को पीकर संसार को अमृत देना जानते हैं. यदि हम बाह्य कर्म करते हुए भी उसमें संस्कारों का विकास करें, तो ईश्वर हमारी भक्ति से सचमुच प्रसन्न होंगे. कर्म के पीछे यही भाव निहित है. इसमें विश्व का जीवन बदलने की शक्ति है. विश्व को इससे मुक्ति मिलेगी.

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