‘पाकिस्तान ने दशकों तक अमेरिका को उल्लू बनाया, अब चीन की बारी…’, पूर्व IAF अफसर ने खोली पोल

भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के साथ चीन की सांठ-गांठ साफ तौर पर सामने आई थी. चीन पर्दे के पीछे रहकर पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य मदद मुहैया कराता रहा है. इसी को लेकर वायुसेना ग्रुप पूर्व कैप्टन अजय अहलावत ने शनिवार को चुटकी लेते हुए पाकिस्तान को धोखेबाज़ी का मास्टर बताया, जिसने ऐतिहासिक रूप से वैश्विक शक्तियों का इस्तेमाल किया है.

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चीन के साथ भी चालबाजी

अमेरिकी पॉलिटिकल साइंटिस्ट सी. क्रिस्टीन फेयर के एक आर्टिकल पर प्रतिक्रिया देते हुए अहलावत ने लिखा, ‘पाकिस्तान चालाकी में माहिर है. वो सभी को मूर्ख बनाता है और किसी को भी नहीं छोड़ता. उसने दशकों तक अमेरिका की उदारता का फ़ायदा उठाया, जबकि उन्हें उल्लू बनाया. वो अब चीन के साथ भी ऐसा ही करेगा, बस समय की बात है.’

अहलावत का यह बयान क्रिस्टीन फेयर की तरफ से पाकिस्तान के बारे में वॉशिंगटन के लगातार गलत नजरिये पर आर्टिकल शेयर करने के बाद आया है, बावजूद इसके कि चालबाजी में पाकिस्तान का एक लंबा रिकॉर्ड है. ‘पाकिस्तान अमेरिकियों को कैसे बहकाता है’ टाइटल वाले अपने आर्टिकल में फेयर ने बताया है कि कैसे अमेरिकी अधिकारी बार-बार पाकिस्तान की गढ़ी गई कहानियों के झांसे में आ गए, जो सॉफ्ट पावर और रणनीतिक हेरफेर करने वाले बर्ताव से प्रेरित थे.

अमेरिकियों के धोखा देते हैं पाकिस्तानी

फेयर ने अपने आर्टिकल में लिखा, ‘पिछले कुछ वर्षों में मुझे वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास के कई अधिकारियों से मिलने का मौका मिला है. सभी ने कभी न कभी एक ही सवाल पूछा है: ‘अमेरिकियों को पाकिस्तानी धोखा कैसे देते रहते हैं? यह नापाक मुल्क आतंकवाद का समर्थन करते हुए और एक गैर-जिम्मेदार परमाणु हथियार देश होते हुए भी अरबों डॉलर की सहायता और सैन्य मदद कैसे हासिल करता रहता है?’

वह बताती हैं कि पाकिस्तान की ताकत सिर्फ़ उसके परमाणु हथियार और आतंकी नेटवर्क नहीं हैं, बल्कि यह भी है कि वह किस तरह से आतिथ्य, अच्छे से बोले गए झूठ और मिलिट्री टूरिज्म के ज़रिए सहानुभूति बटोरता है. उनके मुताबिक, पाकिस्तान पर काम करने वाले कई अमेरिकी अधिकारी अच्छे इरादे वाले भोले-भाले लोग हैं, जो क्षेत्रीय जटिलताओं के बारे में नहीं समझते हैं.

पाकिस्तान की जिहादी रणनीति

फेयर का तर्क है कि पाकिस्तान की रिटेनर स्टेट स्ट्रेटजी अफ़गानिस्तान पर सोवियत आक्रमण से पहले की है. वह हुसैन हक्कानी और अन्य लोगों की ओर से की गई रिसर्च का हवाला देते हुए बताती हैं कि पाकिस्तान ने अपनी जिहादी रणनीति 1973-74 में ही प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में शुरू कर दी थी, इससे बहुत पहले कि अमेरिका इस इलाके की सोवियत विरोधी कोशिशों में शामिल होता.

वह लिखती हैं, ‘पाकिस्तान ने 1973 और 1974 के बीच अपनी जिहाद नीति शुरू की, जब मोहम्मद दाउद खान ने लोकप्रिय राजा ज़ाहिर शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया. उस समय, पाकिस्तान के नागरिक तानाशाह ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने इस्लामवादियों को साधने के लिए ISI अफ़गानिस्तान सेल की स्थापना की. जब तक सोवियत ने क्रिसमस के दिन 1979 में अमु दरिया को पार किया, तब तक मुख्य मुजाहिदीन पार्टियां पहले ही बन चुकी थीं. पाकिस्तान ने यह सब अपने दम पर किया क्योंकि अफ़गानिस्तान में घटनाओं में हेरफेर करना 1947 से ही पाकिस्तान का एक स्थायी रणनीतिक मकसद रहा है.’

लगातार समझौते तोड़ने का इतिहास

फेयर ने पाकिस्तान के रणनीतिक विरोधाभासों पर भी जिक्र किया है, कम्युनिस्ट चीन को खुश करने के साथ-साथ कम्युनिस्ट विरोधी समझौतों का हिस्सा बनने पर जोर देना और प्रमुख अमेरिकी युद्धों में संधियों की अनदेखी करना. जबकि पाकिस्तानियों ने अमेरिका की मदद करने में अमेरिका की विफलता की निंदा की (भारत-बांग्लादेश युद्ध के दौरान) जब संयुक्त राज्य अमेरिका के पास ऐसा करने की कोई जिम्मेदारी नहीं थी, पाकिस्तान ने उसी दौरान कम्युनिस्ट चीन को खुश किया जब उसने उन समझौतों में शामिल होने पर जोर दिया जो साफ तौर पर कम्युनिज्म का मुकाबला करने के लिए बनाए गए थे.’

इसके अलावा, फेयर ने कहा कि SEATO के जरिए अमेरिका के साथ अपनी समझौते के बावजूद, पाकिस्तान ने कोरियाई या वियतनाम युद्धों में भाग नहीं लिया और चीन को हमलावर के रूप में कोट करने से परहेज किया. वह आगे कहती हैं कि पाकिस्तान ने अपने खुद के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मदद हासिल करने के लिए बार-बार अपने भू-राजनीतिक महत्व को फिर से पेश किया, खासकर अफगानिस्तान में.

आतंकियों का मददगार मुल्क

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के साथ लंबे समय से दोहरा खेल खेला है, खुद को एक प्रमुख सहयोगी के रूप में स्थापित करते हुए, साथ ही साथ उन आतंकवादी संगठनों को पनाह और समर्थन दिया है, जिनसे लड़ने की उसने कसम खाई थी. साल 2001 से अरबों अमेरिकी सहायता हासिल  करने के बावजूद, पाकिस्तान ने तालिबान नेताओं और हक्कानी नेटवर्क को सुरक्षित पनाह दी, जिससे अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो फोर्स पर सीमा पार हमले मुमकिन हो सके.

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