साल 2007 में आई डॉन नंबर-1 फिल्म का ये डायलॉग ज़ुबान की बात करके, बच्चे-बड़ों की ज़ुबान तक जा पहुंचा. ये तो फिल्मी ज़ुबान है. लेकिन एक परजीवी ऐसा है जिसे ‘ज़ुबान’ की एक्टिंग करने के लिए एक-आध ऑस्कर दे देना चाहिए. एक दम सच्ची बात है. परजीवी जो मछली की ज़ुबान को खाकर, खुद उसकी ज़ुबान बन जाता है (fish tongue eating louse parasite). काफी ज़ुबानी बातें हो गईं, पहले इसका वीडियो देखिए फिर इसकी कहानी बताते हैं.
पैरासाइट का जोड़ा मछली के भीतर बनाता है घरौंदा
पहले ये इस अलग किस्म के किरदार का हल्का सा जीवन परिचय ले लेते हैं. ये बाबू पाए जाते हैं अमेरिका की कैलिफोर्निया खाड़ी के पास के इलाकों में. इसको नाम दिया गया है सिमोथोआ एग्जीगुआ (Cymothoa exigua). इसको ‘टंग ईटिंग लाऊस’ भी कहा जाता है. यानी जीभ खाने वाले कीडे़. ये कीड़े जोड़े में रहते हैं. जिसमें नर मादा के पीछे जुड़ा रहता है. काफी गहरा प्रेम.
खैर होता ये है कि मछली जब अपने गलफड़ों (गिल्स) से सांस लेती है, तब पानी के जरिए इसके लारवा उसके (गिल्स) से होते हुए, भीतर पहुंच जाते हैं. जहां नर पैरासाइट मछली के गिल्स में बसेरा करता है. तो वहीं मादा ज़ुबान को अपना निशाना बनाती है (तेरी ज़ुबान बहुत चलती है सूर्या बोलते हुए शायद)
फिर होता है खेला!
एग्जीगुआ पैरासाइट जब मछली की ज़ुबान तक पहुंचता है. तो मादा पैरासाइट ज़ुबान में चिपककर उससे खून चूसना शुरू कर देती है. धीरे-धीरे मझली की ज़ुबान मर जाती है. और वो टूटकर गिर जाती है. फिर खेल शुरू होता है एक्टिंग का. जिसमें ओवरएक्टिंक का पचास रुपिया भी नहीं काटा जा सकता है. क्योंकि मछली को लगता है कि ये पैरासाइट उसी की ज़ुबान है. यहां तक वो इसका इस्तेमाल भी थोड़ा बहुत किसी ज़ुबान की तरह कर सकती है. मतलब ज़ुबान खाकर ज़ुबान बन जाता है ये परजीवी.
क्या इंसानों को भी है इससे खतरा?
हालांकि ये पैरासाइट इतना आम नहीं है. ये अमेरिकी महाद्वीप के कुछ इलाकों में पाया जाता है. वो भी कुछ चुनिंदा मछलियों की प्रजातियों में. लेकिन हाल के सालों में ये कुछ यूरोपीय देशों में भी मिली हैं. अनुमान है कि ये दूसरी मछलियों की प्रजातियों तक पहुंची होगी.
खैर न ही ये जहरीली होती हैं. न ही इंसानों की ज़ुबान पर ये परजीवी होती है. नुकसान पहुंचाने के नाम पर बस थोड़ा बहुत काट सकती है. इसी से जुड़ा एक दिलचस्प मामला पोर्टो रीको में सामने आया था. जहां एक महिला की लाई मछली में एग्जीगुआ पैरासाइट था और उसने गलती से उसे खा लिया.
जिसके बाद उसने जिस सुपरमार्केट से वो खरीदी थी, उस पर मुकदमा ठोक दिया. लेकिन इसमें एक अनोखी दलील के चलते मुकदमा खारिज कर दिया गया कहा गया कि ये तो कई जगह पर वैसे भी खाए ही जाते हैं. कुल मिलाकर लुब्ब-ए-लुबाब ये है कि इंसानों के लिए इतने खतरनाक नहीं हैं, जितने कि मासूम मछलियों के लिए.
इतनी बेरहमी कोई खास वजह?
सवाल ये कि ये ऐसा क्यों करती हैं तो इसका जवाब छिपा है किसी भी परजीवी जीव के जीवन में. परजीवियों के जीवन में कई स्टेज हो सकते हैं. जिनमें वो जीवन की अलग-अलग अवस्था में अलग जगह या अलग होस्ट के साथ रह सकते हैं. ऐसा ही मामला जीभ खाने वाले इन परजीवियों का है.
ये जब छोटे होते हैं तो किसी मछली के भीतर जाते हैं. दिलचस्प बात ये है कि तब ये नर होते हैं. वहां ये खा-पीकर बड़े होते हैं. और इनमें से एक मादा में बदल जाता है. मादा में बदलने के बाद वो मछली की जीभ में डेरा डालक पोषण लेती है. वहीं दूसरी तरफ प्रजनन करके अपना कुनबा बड़ा करती हैं.