यह घटना मध्य प्रदेश के इंदौर जिले की है. 21 मार्च को ही एक तीन साल की बच्ची की मौत हो गई और उसने मरने तक व्रत किया था. 3 साल की वियाना पर व्रत करने की प्रथा को उसके माता-पिता ने ही उसपर अपनाया. घटना को बीते हुए कई दिन हो गए, लेकिन इसके बारे में जानकारी तब सामने आई जब पीयूष जैन और वर्षा जैन को अमेरिका के संगठन गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स से मान्यता मिली. ये मान्यता थी उनकी बेटी वियाना के लिए. वियाना संथारा लेने वाली सबसे कम उम्र की शख्स बन गई हैं.
क्या है संथारा?
संथारा को सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रथा के जरिए मरने की इच्छा रखने वाले लोग अपनी मर्जी से खाना और पानी को त्याग देते हैं. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे कुछ समय के लिए अवैध बताया था. उनके मुताबिक ये प्रथा जैन धर्म के लिए जरूरी नहीं है, लेकिन कुछ ही समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. जिससे यह वैध हो गया.
वियाना को था ब्रेन ट्यूमर
दिसंबर के महीने में जांच में सामने आया कि वियाना को ब्रेन ट्यूमर है. 10 जनवरी को मुंबई में उसकी सर्जरी हुई. सर्जरी सफल रही, लेकिन मार्च में कैंसर दोबारा से उभर आया. वियाना की मां वर्षा ने बताया कि वह ठीक थी, लेकिन 15 मार्च को वो फिर से बीमार पड़ गई और डॉक्टरों ने ट्यूमर के फिर से उभरने के बारे में बताया.
वर्षा के मुताबिक, 18 मार्च से वियाना को जूस दिया जा रहा था. डॉक्टरों ने 21 मार्च से जूस पिलाने के लिए फीडिंग ट्यूब लगाई और कहा कि उसके ठीक होने के बाद इसका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
लेकिन वियाना की ये हालत देखने के बाद उसके माता पिता ने उस शाम, अपने आध्यात्मिक गुरु राजेश मुनि महाराज से सलाह ली. वर्षा के आध्यात्मिक गुरु ने वियाना को संथारा लेने की सलाह दी. उनके मुताबिक, वियाना का दर्द भी कम होगा और उसका अगला जन्म भी को बेहतर रहेगा. ऐसे में वियाना को संथारा दिलाने के लिए उसकी मां राजी हो गई.
इंदौर में ही आध्यात्मिक गुरु के आश्रम में रात 9.25 बजे संथारा समारोह शुरू हुआ. वियाना की मृत्यु रात 10.05 बजे हुई. अनुष्ठान शुरू होने के लगभग 40 मिनट बाद उसकी मौत हुई थी. उसकी मां ने कहा अपनी बेटी को खोकर हम टूट गए हैं.
क्या बच्चे के साथ ऐसा किया जाना सही है?
यह बात सच है कि इस मामले में एक बच्ची शामिल है. इस वजह से इसने समाज में कानूनी बहस छेड़ दी है कि क्या उन्हें इस तरह की प्रथा के लिए सहमति देने के योग्य माना जाता है? मध्य प्रदेश बाल अधिकार आयोग के सदस्य ओमकार सिंह ने कहा कि यह बुज़ुर्ग लोगों के लिए एक धार्मिक प्रथा है. मुझे माता-पिता के साथ सहानुभूति है, लेकिन यह एक छोटे बच्चे के साथ नहीं किया जाना चाहिए, भले ही वह अपनी मृत्युशैया पर हो. बच्चे को कुछ भी पता नहीं था.
डॉक्टरों ने कहा कि मेरी राय में माता-पिता को उसे आध्यात्मिक स्थान पर ले जाने के बजाय हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती कराना चाहिए था. लड़की बहुत छोटी थी और वह अनुष्ठान के तनाव को सहन नहीं कर सकती थी.