किसी भी परिवार में जब कोई बच्चा जन्म लेने वाला होता तो उस परिवार के लोगों में बहुत उत्सुकता होती है. सबसे ज्यादा उत्सुकता तो बच्चे को जन्म देने वाले मां-बाप में होती है. इस दौरान कुछ लोग लड़के की चाहत रखते हैं, वहीं कुछ लड़की को जन्म देना चाहते हैं. हालांकि, बच्चे का लिंग निर्धारण करना उनके हाथ में नहीं होता है. ऐसे में वो सिर्फ आने वाले बच्चे का स्वागत करते हैं. अब वैज्ञानिकों के प्रयोग से एक ऐसी तरकीब सामने आई है, जिससे कोई भी मां-बाप बिना भ्रूण हत्या के अपने मन मुताबिक लड़के या लड़की को जन्म दे सकेंगे. वैज्ञानिकों ने कहा कि ये एक क्रांतिकारी प्रयोग है और दुनिया के किसी भी इलाके में लिंग अनुपात को ठीक करने में मदद मिलेगी. ये जानकर आपको हैरानी जरूर हुई होगी लेकिन ये सच है. वैज्ञानिकों ने कैसा प्रयोग किया है, इससे जानने से पहले आपका ये जान लेना जरूरी है कि आखिर इंसानों में बच्चों का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
गर्भ में कोई बच्चा कैसे लड़की या लड़का बनता है?
स्तनधारियों के पाए जाने वाले क्रोमोसोम्स किसी भी जीव का लिंग निर्धारण करते हैं. क्रोमोसोम्स ही यह तय करते हैं कि किसी भी जीव का बच्चा मेल होगा या फीमेल. इंसान भी स्तनधारियों में ही आते हैं, ऐसे में ये बात उन पर भी लागू होती है. हमारे शरीर में X और Y दो तरह के क्रोमोसोम्स होते हैं, जिसमें पुरुषों में XY दोनों और महिलाओं में XX के रूप में केवल एक क्रोमोसोम्स पाया जाता है. Y क्रोमोसोम्स मेल शरीर को विकसित करता है, टेस्टिकल्स इसका एक अहम हिस्सा है. वहीं X क्रोमोसोम्स अंडाशय और गर्भाशय जैसे फीमेल शरीर को बनाता है. यह काम गर्भ धारण के बाद कुछ ही हफ्तों में हो जाता है.
गर्भ धारण के दौरान पुरुष के शुक्राणु से निकला Y क्रोमोसोम्स यदि महिला के शुक्राणु से निकले X क्रोमोसोम्स के साथ सेट होता है तो बच्चा लड़के के रूप में जन्म लेता है. इसलिए किसी बच्चे के मेल होने में Y क्रोमोसोम्स का अहम भूमिका होता है. अगर पुरुष में मौजूद X क्रोमोसोम्स सेट होता है तो वह बच्चा गर्भाशय में लड़की के रूप में तैयार होता है. ये तो नॉर्मल प्रक्रिया है लेकिन अब नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित हुई एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि माइक्रोआरएनए (mircoRNAs) कहे जाने वाले Y क्रोमोसोम्स के कुछ छोटे कणों को हटाते ही लिंग परिवर्तन हो जाता है. वह जीव मेल से फीमेल बन जाता है.
माइक्रोआरएनए और जीन्स भी करते हैं लिंग निर्धारण
कोई बच्चा मेल होगा या फीमेल इसमें केवल क्रोमोसोम्स ही नहीं बल्कि माइक्रोआरएनए और जीन्स जैसे फैक्टर भी काम करते हैं. बच्चे के लिंग निर्धारण के लिए विपरीत जीन्स के बीच के सटीक संतुलन होना बेहद जरूरी है. Y क्रोमोसोम्स में मौजूद SRY नाम का जीन तय करता है कि टेस्टिकल्स बनेंगे या नहीं, यानी बच्चे का शरीर लड़के का होगा या नहीं. जैसे ही यह जीन गायब होता है Y क्रोमोसोम्स X में बदल जाता है और अंडाशय बनने लगता है यानी बच्चे का शरीर लड़की का हो जाता है. इसके अलावा दूसरे जीन्स और माइक्रोआरएनए भी लिंग तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. हालांकि वैज्ञानिकों के इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि इंसानों में मौजूद 98 प्रतिशत जीनोम समेत स्तनधारियों के डीएनए का एक बड़ा हिस्सा प्रोटीन के लिए कोड नहीं करता है. इस स्थिति में वैज्ञानिकों ने हजारों माइक्रोआरएनए में से ऐसे 6 की पहचान की, जो जीन्स से जुड़कर उसे अपने हिसाब से कंट्रोल कर सकते हैं. इसके बाद लिंग बदलने की प्रक्रिया का चूहों पर एक्सपेरिमेंट किया गया.
कैसे हुआ चूहों का लिंग परिवर्तन?
वैज्ञानिकों ने प्रेग्नेंट चूहों पर एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने इस दौरान पता नहीं था कि किसके गर्भ में XY और किसके गर्भ में XY क्रोमोसोम्स सेट है. वैज्ञानिकों ने चूहों के विकसित होते भ्रूण से इन छह खास जीन्स को डिलीट करके हटा दिया. उनके छह जीन्स हटाते ही XY क्रोमोसोम वाला चूहा मादा में बदलने लगा, जबकि XX वाला नर ही बना रहा. ये Y क्रोमोसोम में मौजूद लिंग निर्धारण करने वाले SRY जीन्स के कारण हुआ. SRY जीन अपने विपरीत जीन्स के साथ सही समय पर संतुलन नहीं बना पाया. उसे ये काम करने में नॉर्मल से 12 घंटे ज्यादा लगे. इससे मेल शरीर बनाने वाले प्रोटीन पर असर पड़ा और टेस्टिकल्स नहीं डेवलेप हुए. इससे चूहे का लिंग पूरी तरह परिवर्तित हो गया और वह नर से मादा बनने लगा. हालांकि, अभी इसे चूहे पर प्रयोग किया है लेकिन चूहा इंसानों की तरह स्तनधारी जीव है. इसलिए अब इसी तरकीब को वैज्ञानिक इंसानों पर भी आजमाना चाहते हैं.