संसद ही सर्वोच्च, नागरिक में बसती है लोकतंत्र की आत्मा: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

जहां देश में इस समय संसद और न्यायपालिका के बीच बहस छिड़ी हुई है, इसी दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी में बोलते हुए कहा कि संसद सर्वोच्च है. इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संसद सर्वोच्च है और निर्वाचित प्रतिनिधियों से ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं है. निर्वाचित प्रतिनिधि ही संविधान का “Ultimate Masters” हैं और संसद से ऊपर कोई प्राधिकारी नहीं है.

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उन्होंने आगे कहा, एक प्रधानमंत्री जिसने आपातकाल लगाया था, उसे जवाबदेह ठहराया गया. लोकतंत्र लोगों के लिए है और सेफगार्ड है, यह निर्वाचित प्रतिनिधियों का है. संविधान में संसद से ऊपर किसी प्राधिकारी की कल्पना नहीं की गई है. संसद सर्वोच्च है. यह देश के प्रत्येक व्यक्ति जितना ही सर्वोच्च है.

“संसद ही सर्वोच्च”

जगदीप धनखड़ ने कहा, हम संविधान दिवस और संविधान हत्या दिवस क्यों मनाते हैं? क्योंकि 1949 में संविधान को अपनाया गया था और उस संविधान को 1975 में “नष्ट” कर दिया गया था. आपातकाल लोकतांत्रिक दुनिया के मानव इतिहास का सबसे काला दौर था. उन्होंने आगे कहा, मैं सबसे काला इसलिए कह रहा हूं क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने 9 उच्च न्यायालयों के फैसले को नजरअंदाज करते हुए अपना फैसला सुनाया था. 9 उच्च न्यायालयों को यह स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों पर कभी रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन ऐसा किया गया.

“लोकतंत्र के लिए नागरिक की अहम भूमिका”

उपराष्ट्रपति ने कहा, किसी भी लोकतंत्र के लिए प्रत्येक नागरिक की अहम भूमिका होती है. मुझे यह अकल्पनीय रूप से दिलचस्प लगता है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह सामने रखा है कि संवैधानिक कार्यालय औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं. इस देश में हर किसी की भूमिका की गलत समझ से कुछ भी दूर नहीं किया जा सकता है, चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक.

मेरे अनुसार नागरिक सर्वोच्च है क्योंकि राष्ट्र और लोकतंत्र का निर्माण नागरिकों से होता है. उनमें से हर एक की अपनी भूमिका है! लोकतंत्र तब फलेगा-फूलेगा, उसके मूल्य तब बढ़ेंगे जब नागरिक जागरूक होगा, नागरिक योगदान देगा और नागरिक जो योगदान देगा उसका कोई विकल्प नहीं है.

उपराष्ट्रपति ने कहा, एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है (गोरकानाथ मामला) और दूसरे मामले में यह कहता है कि यह संविधान का हिस्सा है (केशवानंद भारती) केस. उन्होंने आगे लोकतंत्र में बातचीत के महत्व पर जोर दिया और कहा कि लोकतंत्र को बाधित नहीं किया जा सकता है.

“हमारी चुप्पी बहुत खतरनाक हो सकती है. सोचने वाले दिमागों को हमारी विरासत को संरक्षित करने में योगदान देना होगा. हम संस्थानों को बर्बाद करने या व्यक्तियों को कलंकित करने की अनुमति नहीं दे सकते. संवैधानिक प्राधिकरण का हर शब्द संविधान के तरफ से निर्देशित होता है. उन्होंने कहा, “हमें अपनी भारतीयता पर गर्व करना चाहिए. हमारा लोकतंत्र व्यवधान कैसे बर्दाश्त कर सकता है. सार्वजनिक संपत्ति जलाई जा रही है. सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हो रही है. हमें इन ताकतों को बेअसर करना होगा.

उन्होंने कहा कि सही बात, सही समय, सही समूह को और सही व्यक्ति को कहने में हिचकिचाहट करोगे तो खुद को तो दुर्बल करोगे ही, उन सकारात्मक शक्तियों को भी आप गहरी चोट पहुंचाओगे. इसलिए, अभिव्यक्ति और संवाद सर्वोप्रिय है.

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