स्किन दमकती रहे. दांत कतार में हों. खाना परोसते या सेफ्टी रूल्स बताते हुए हाथ खूबसूरत लगें. और वजन करो तो 16 अंगूरों के बाद 17वां न चढ़े. हर कुछ वक्त में इंची-टेप से हमें खुद को मापना होता है. पेट पर एकाध ज्यादा किलो, या चेहरे पर एक छोटा उभार भी हमें फ्लाइट में जाने से रोक सकता है. एयर होस्टेस होना रोज किसी पतली रस्सी पर चलने जैसा है, जिसके नीचे गहरी खाई हो. दमभर सांस भी ली और सब खत्म.
हवाई यात्राओं की शुरुआत में फ्लाइट अटेंडेंट पुरुष ही हुआ करते थे. ज्यादातर होमोसेक्सुअल, जिनका काम था सफर कर रहे अमीर यात्रियों को खुश रखना. तीस के दशक में इसमें महिलाओं की एंट्री हुई, और फिर संख्या बढ़ने लगी.
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अनुसार, आज पूरी दुनिया में अस्सी फीसदी फ्लाइट अटेंडेंट औरतें हैं. 18 से 24 साल की लड़कियां. काम कुछ खास नहीं. चुस्त कपड़े पहनकर मुस्कुराइए, और पके-पकाए खाने की ट्रे सर्व कीजिए. साथ में दुनिया के ओने-कोनों की मुफ्त सैर. बदले में भरपूर पैसे. लेकिन क्या वाकई एयर होस्टेस की कहानियां उतनी सुनहली हैं! या हजारों फीट ऊपर चलती इस कहानी में कुछ तीता-खारा भी है!
सोशल मीडिया पर एयर अटेंडेंट्स अपनी तकलीफें बांटती रहती हैं. लेकिन ज्यादातर विदेशी. नाम छिपाकर. या रिटायरमेंट के बाद. देसी फ्लाइट अटेंडेंट्स शायद ही कभी कुछ कहती दिखें. हमारे साथ ही यही हुआ. लोगों ने बात तो की तो लेकिन नाम बदलने की शर्त के साथ. एक को पहचान देने पर एतराज नहीं, लेकिन वे फ्लाइंग इंडस्ट्री से दूरी बना चुकी हैं.
चहक धींगरा कहती हैं- मैंने करीब चार साल तक फ्लाई किया.
ए320 और ए321 दोनों तरह के एयरक्राफ्ट में काम कर चुकी. सफर करने वालों को लगता है कि एयर होस्टेस के पास तीन ही काम हैं- मेकअप, रटी-रटाई अनांसमेंट, और खाना परोसना. इतने ही कामों के बदले उन्हें जमकर पैसे मिलते हैं. लेकिन सच ये नहीं. जो आप लोग देखते हैं, वो हमारे काम का 10 फीसदी भी नहीं. हमारी लंबी ट्रेनिंग और एग्जाम भी होता है. इसमें पासिंग मार्क्स ही 90 प्रतिशत हैं. इससे चूके तो लंबे वक्त के लिए दोबारा एग्जाम नहीं दे सकेंगे.
इस पड़ाव को पार कर लें तो लंबी ट्रेनिंग होती है. हमें पता होना चाहिए कि फ्लाइट में फर्स्ट एड की सारी दवाएं हैं और किसका काम क्या है. अगर हवा में ही किसी को लेबर पेन उठे, और डॉक्टर न हों तो हमें क्या करना है. कोई इमरजेंसी आए और यात्रियों को निकालना हो तो जमीन से लेकर पानी में इवेक्युएशन कैसे हो. हम ये सब जानते हैं.
इसके बाद आता है दूसरा हिस्सा, यानी खुद को प्रेजेंटेबल दिखाना. चेहरा हेल्दी लगे. बाल अच्छे होने चाहिए. आप कैसे चलते हैं. हाथों को कैसे हिलाते हैं. खाना परोसने से लेकर जूठा सकेलते हुए भी मूवमेंट खूबसूरत होनी चाहिए.
चेहरे पर एक पिम्पल आया कि आपको ग्राउंड पर भेज दिया जाएगा. खुद मेरे साथ ऐसा हो चुका.
एक वक्त मैं इतनी ऑब्सेस्ड हो चुकी थी कि रोटी-सब्जी छोड़कर विटामिन ए ही लेने लगी. सेब से लेकर गाजर तक वो सब खाती, जिससे स्किन चमकती दिखे. दवाएं लेने लगीं. लंबी दवाओं की वजह से मुझे ऑटोइम्यून हिपेटाइटिस हो चुका था. हालात इतने बिगड़े कि अस्पताल में भर्ती हो गई. डॉक्टर ने वॉर्निंग दे दी. आखिरकार मुझे ये करियर छोड़ना पड़ा.
चलिए, एक बार आपने ये सारे पड़ाव पार कर भी लिए जो टेस्ट खत्म नहीं होगा. दिल्ली से हैदराबाद जाना हो, या न्यूयॉर्क- यात्री लगातार आपका सब्र परखेंगे. किसी को पसंदीदा सीट न मिलने पर गुस्सा आ जाता है, तो कोई अल्कोहल न मिलने पर भड़क जाता है.
ज्यादातर लोग मानते हैं कि जितनी महंगी टिकट है, उसकी कीमत क्रू से बदतमीजी करके ही वसूल होगी.
फिजिकल एब्यूज आम है. मेरी एक कलीग का किस्सा है. फ्लाइट लैंड करने पर लोग उठने लगे थे. धक्का-मुक्की रोकने के लिए उसने बैठने की अनाउंसमेंट की. लेकिन फ्लायर गुस्सा हो गए. एक ने गंदी कमेंट करते हुए मेरी कुलीग को टच कर दिया. वो जूनियर थी. लगभग 19 साल की. सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि वो रिएक्ट तक नहीं कर सकी. ऐसा सिर्फ उसके साथ नहीं हुआ, न ही आखिरी बार.
कई लोग किनारे की सीट लेते हैं ताकि आते-जाते हम छू सकें. खाने की ट्रॉली घसीसते हुए कुछ नजरें हमकर टिकी रहती हैं. कई इससे भी आगे निकल जाते हैं. लेकिन हमें अपना चेहरा मुस्कुराता हुआ, और आवाज धीमी रखनी होती है.
एक चूक और हमारे नाम के खाने पर रेड टिक लग जाएगा.
यही बात मुंबई की एक सीनियर एयर होस्टेस भी बताती हैं, जो सालों से इंटरनेशनल फ्लाइंग में हैं. वे कहती हैं- इंटरनेशनल फ्लाइंग में कॉमन है कि लोग आपसे पर्सनल होना चाहें. बहुत से बड़े फ्लायर होते हैं, जो अक्सर आते-जाते हैं. ऐसे ही एक फ्लायर ने मेरी दोस्त को एक टिशू पेपर दिया. मिलने का न्यौता. दोस्त ने बिना हो-हल्ला मचाए उसी टिशू पर इनवाइट ठुकरा दिया. बात खत्म! लेकिन नहीं बात शुरू हुई थी. होटल पहुंचते ही कमरे पर दस्तक हुई. उसी शख्स के लोग मेरी दोस्त को साथ ले जाने आए थे. होटल वालों ने रूम नंबर ही नहीं दिया था, बल्कि वहां तक एक्सेस भी दे दी थी.
विदेशी जमीन. कोई जान-पहचान नहीं. दोस्त को जाना पड़ा.
फोन पर हो रही इस बातचीत में भी कथित दोस्त के लिए ‘निहायत अपनी’ तकलीफ साफ थी.
कई बार यात्री गंदे इशारे करते हैं. बिजनेस क्लास वाले और आगे हैं.
लैपटॉप पर पोर्न चलाते हुए बहुत से लोग शराब मांगेगे. आप परोसिए. वे आपको फिर बुलाएंगे. इस बार कोई और डिमांड. आपको जाना ही होगा. अगर शराब पीते हुए वे उल्टियां कर दें तो भी आप उनको गर्म टिशू देंगी. चेहरे पर बिना किसी भाव के साथ.
माथे पर हल्की सिकुड़न आई या आवाज की नरमी जरा कम हुई कि फ्लायर शिकायत कर देंगे. जब तक इंक्वयारी न हो, हमें डेस्क पर बिठा दिया जाता है. अगर शिकायत करने वाले का रसूख ज्यादा हो, तो नौकरी भी जा सकती है.
दोस्त के नाम पर ही सही, लेकिन खुलकर बताती ये सीनियर क्रू अपना नाम देने को राजी नहीं. कहती हैं- कमा-कमाया सब चला जाएगा. कुछ सालों में रिटायर होकर कुछ नया करूंगी. ट्रेनिंग का भी ऑफर है. पहचान खुली तो कोई काम नहीं देगा.
इन्हीं के जरिए एक और फ्लाइट अटेंडेंट मिलीं. शादीशुदा. बाल-बच्चेदार. वे खुद ही बताती हैं- दो बच्चे हैं. महीने में एक बार या कभी-कभी इतना भी नहीं मिल पाती. घर लौटती भी हूं तो उन्हें खास मतलब नहीं. स्कूल जा रहे हैं. खिलौने-खाना मिल रहा है. बस इतना ही. घर पर नैनी रखी हुई है. मुझसे ज्यादा वे उससे कनेक्ट करते हैं.
आपको मलाल नहीं होता, कभी करियर बदलने की सोची?
अनमिले चेहरे से सवाल शायद ज्यादा डायरेक्ट रहा होगा. फोन पर छोटी चुप्पी के बाद जवाब आता है- अब और करूं भी तो क्या! झारखंड के छोटे गांव से हूं. अंग्रेजी दूर, बिना अटके हिंदी भी नहीं बोल पाती थी. मुंबई आई तो सब खूब नाराज रहे. गांववाले मेरी फैमिली के बारे ऊटपटांग बोलते.
फिर नौकरी पक्की तो हुई लेकिन फ्लाइट में कलीग भी रोज मजाक बनाती. कभी मोटे होंठों पर तो कभी मोटे लहजे पर. अब सब सध चुका. मेरे पास अपना घर है. खुद का कमाया परिवार भी. ये काम छोड़ना अपना नाम छोड़ने से मुश्किल है.
पति को जरूर गुस्सा आ जाता है. वे चाहते हैं कि मैं छोटी स्कर्ट में विदेश भले जाऊं, लेकिन हर तीज-त्योहार पर साड़ी पहनकर सारी रस्में करने के लिए लौट आऊं. वे एविएशन से नहीं. इंजीनियर हैं. दोस्तों की पत्नियों को देखते हैं तो अपनी पत्नी का अलग पेशा परेशान करता होगा. पहले टोकते भी थे. अब चुप साध चुके. बच्चों की तरह ही उन्हें भी मेरे लौटने, न लौटने से फर्क नहीं पड़ता.
अक्सर सुनने में आता है कि इस प्रोफेशन में कैजुअल रिश्ते आम हैं!
आप लोग आधा खाली गिलास देख रहे हैं. ऐसा अब कहां नहीं होता. हां लेकिन हम भी इसमें शामिल हैं. लंबे सफर. रोज नए-नए लोगों से मिलना. पोस्ट-फ्लाइंग पार्टियां. बहुत कुछ है जो हमें एक रिश्ते में बंधा रहने से रोकता है. कोई कमिटमेंट कर भी ले तो पार्टनर की डिमांड से परेशान हो जाती है. जब सुबह 11 बजे वो 14-15 घंटे की ड्यूटी के बाद सोने जाते हैं, फोन बजने लगेगा. मिलने की उम्मीद. इनकार पर गुस्सा.
अक्सर टाइम जोन का फर्क इतना रहता है कि रिश्ता दरक जाता है. लड़की कमिटेड हो तो भी दूर बैठा पार्टनर उसपर शक करेगा. ऐसे में रिश्ते में जाया ही क्यों जाए!
फ्लाइंग में लगभग 10 साल दे चुकी इस एयर होस्टेस के रुटीन में भी कम अंधेरा नहीं.
कुछ रोज पहले की बात है. बिजनेस क्लास में मैं किसी को ड्रिंक्स सर्व कर रही थी कि अचानक घुटनों पर कुछ लगा. शायद उस यात्रा का हाथ! मैं चिंहूकी और ड्रिंक छलक पड़ा. वो चिल्लाने लगा. मैं कह भी नहीं सकी कि ऐसा हुआ क्यों था. उम्रदराज यात्री का गाली-गलौज से मन नहीं भरा तो नीचे उतरकर उसने मेरी शिकायत भी कर दी. लोग सोचते हैं कि टिकट के साथ उन्होंने स्कर्ट में फिरती लड़की भी खरीद ली है.
सवाल पूछा जाने से पहले ही इस बार जवाब लौटता है. हां. शुरुआत हल्की-फुल्की रहती है. पार्टियों में अलग न दिखें, इसके लिए. फिर आदत पड़ जाती है. शराब तक तो ठीक है, घूमते हुए बहुत से लोग ड्रग्स भी लेने लगते हैं. कई वजन घटाने की दवाओं पर रहते हैं. कुछ थकान से बचने के लिए पिल्स लेते हैं. चेक किया जाए तो हमारे शरीर में खाना उतना नहीं मिलेगा, जितनी दुनियाभर की दवाएं या शराब. और अधबाकी नींद.
फ्लाइंग में रिटायरमेंट कब होता है?
इसमें चेहरे पर झुर्री आने तक वक्त नहीं मिलता. उम्र कितनी भी हो, आपको लगना 19-20 का ही है. 30 पार के दिखे कि हवा से उठाकर सीधे जमीन पर पटक दिया जाएगा. आप लाख रो लीजिए कि कस्टमर को चाय-पानी सर्व करने, या इमरजेंसी में बचाने का हुनर आपसे अच्छा कोई नहीं जानता, कोई नहीं सुनेगा. हम टिकट के साथ कुछ घंटों के लिए फ्री मिलने वाली डॉल हैं, फ्री मील की तरह.