बाजार में करीब 50 हजार रुपये की कीमत वाला डेंटल बोन ग्राफ्ट अब मरीजों को फ्री मिलेगा. दिल्ली सरकार के इस बड़े अस्पताल में सेंट्रल टिश्यू बैंक शुरू किया गया है, जहां अब दांतों का इलाज कराने आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को बड़ी सुविधा मिलने जा रही है. अभी तक डेंटल बोन ग्राफ्ट की जरूरत पड़ने पर मरीजों को इसे बाजार से खरीदकर सरकारी अस्पताल में लगवाना पड़ता था.
दांतों में किसी भी प्रकार की कैविटी, एक्सीडेंट या किसी अन्य वजह से मसूढ़ों में गंभीर चोट या कोई इन्फेक्शन की वजह से खराब हुए मसूढों की समस्या को ठीक करने के लिए मरीजों को डेंटल बोन ग्राफ्टिंग की जरूरत पड़ती है. अभी तक दिल्ली सरकार के मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज में ग्राफ्टिंग के लिए आने वाले मरीजों को यह बोन ग्राफ्ट बाजार से खरीदकर लाना पड़ता था. जिसकी भारत में कीमत करीब 7 हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक है.
हाल ही में दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री पंकज सिंह ने मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज में इस स्टेट ऑफ आर्ट सुविधा का उद्घाटन किया है. मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज की छठी मंजिल पर स्थित प्रीडोंटोलॉजी विभाग में नवनिर्मित डेंटल काउंसिल के ऑफिस के साथ ही द सेंट्रल टिश्यू बैंक की शुरूआत की गई है, जिसमें मरीजों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक साथ कई सुविधाएं शुरू की गई हैं.
डेंटल कॉलेज की ओर से बताया गया कि द सेंट्रल टिश्यू बैंक पूरी तरह कैशलेस होगा. दिल्ली डेंटल काउंसिल देशभर की पहली ऐसी काउंसिल है, जिसे इस सुविधा को शुरू करने की अनुमति दी गई है. डेंटल के इलाज की सभी प्रक्रियाओं को एक निर्धारित समय में पूरा करने के लिए फ्रेमवर्क भी तैयार किया गया है, जिससे इलाज की क्वालिटी में सुधार होगा.
कब लगाया जाता है बोन ग्राफ्ट?
टिश्यू या बोन ग्राफ्ट का प्रयोग उस अवस्था में किया जाता है, जबकि मरीज की हड्डी सड़क हादसे या अन्य किसी वजह से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती है, और सामान्य प्लास्टर से टिश्यू के दोबारा आने की गुंजाइश बहुत कम होती है, ऐसे में बोन का ग्राफ्ट या टिश्यू प्रभावित जगह पर ट्रांसप्लांट किया जाता है जिससे टूटी हड्डी सामान्य रूप से फिर से बढ़ने लगती है. यही तरीका दांतों में हुए नुकसान को ठीक करने के लिए अपनाया जाता है, जिसमें रूट कैनल या फिर मसूढ़ों को फिक्स करने के लिए डेंटल बोन ग्राफ्ट इस्तेमाल होता है, जिससे दांतों दोबारा जड़ से मजबूती के साथ जुड़ते हैं.
टिश्यू या बोन ग्राफ्ट का प्रयोग उस अवस्था में किया जाता है, जबकि मरीज की हड्डी सड़क हादसे या अन्य किसी वजह से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती है, और सामान्य प्लास्टर से टिश्यू के दोबारा आने की गुंजाइश बहुत कम होती है, ऐसे में बोन का ग्राफ्ट या टिश्यू प्रभावित जगह पर ट्रांसप्लांट किया जाता है जिससे टूटी हड्डी सामान्य रूप से फिर से बढ़ने लगती है. यही तरीका दांतों में हुए नुकसान को ठीक करने के लिए अपनाया जाता है, जिसमें रूट कैनल या फिर मसूढ़ों को फिक्स करने के लिए डेंटल बोन ग्राफ्ट इस्तेमाल होता है, जिससे दांतों दोबारा जड़ से मजबूती के साथ जुड़ते हैं.
यह है रीजेनरेटिव ट्रीटमेंट
बता दें कि टिश्यू चाहे डेंटल हो या फिर बोन ग्राफ्ट इसे ऑटोलागस ही प्रयोग किया जाता है, मतलब जिस मरीज की हड्डी को जोड़ना है, उस मरीज के शरीर की किसी अन्य जगह की हड्डी को फ्रेक्चर की जगह प्रत्यारोपित किया जाता है और दांतों के इलाज में भी क्षतिग्रस्त दांत को मरीज के ही दांतों के ऑटोलागस पाउडर को प्रयोग कर मसूढ़ों को दुरूस्त किया जाता है. इसलिए इसे रीजेनेरेटिव ट्रीटमेंट भी कहा जाता है.
बता दें कि टिश्यू चाहे डेंटल हो या फिर बोन ग्राफ्ट इसे ऑटोलागस ही प्रयोग किया जाता है, मतलब जिस मरीज की हड्डी को जोड़ना है, उस मरीज के शरीर की किसी अन्य जगह की हड्डी को फ्रेक्चर की जगह प्रत्यारोपित किया जाता है और दांतों के इलाज में भी क्षतिग्रस्त दांत को मरीज के ही दांतों के ऑटोलागस पाउडर को प्रयोग कर मसूढ़ों को दुरूस्त किया जाता है. इसलिए इसे रीजेनेरेटिव ट्रीटमेंट भी कहा जाता है.
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