अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत-पाकिस्तान के बीच की ताजा लड़ाई में दखल देने से इनकार करते हुए 9 मई को ही कहा था कि ‘हम युद्ध के बीच में दखल नहीं देने जा रहे हैं, यह मूल रूप से हमारा काम नहीं है.’ वेंस का ये बयान ट्रंप प्रशासन के उन नीतियों के अनुकूल ही था जहां ट्रंप किसी और देश के लफड़े से यथासंभव दूरी बनाए रखने में विश्वास करते हैं.
फिर ऐसा क्या हुआ कि 24 घंटे के बाद ही अमेरिका को दक्षिण एशिया में अनहोनी की आशंका सताने लगी. इसके बाद वाशिंगटन से लेकर इस्लामाबाद और दिल्ली तक कूटनीतिक गतिविधियां अचानक से तेज हो गई. भारत पाकिस्तान और अमेरिका- तीन देशों की राजधानियों में फोन की घंटिया घनघनाने लगी.
अमेरिका के अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की है. NYT ने अपनी रपट में लिखा है कि उपराष्ट्रपति वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो को उसी अनहोनी की आशंका सता रही थी जैसा डर आज से 25 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को सता रहा था. जब करगिल घुसपैठ के दौरान भारत और पाकिस्तान के सेनाएं आमने-सामने खड़ी हो गई थी. ये डर था कि दो पड़ोसियों का युद्ध कहीं परमाणु हमले की शक्ल न ले ले.
22 अप्रैल को पहलगाम में 26 बेगुनाह सैलानियों की आतंकियों के द्वारा हत्या के बाद 7 मई को भारत की जवाबी कार्रवाई से इस युद्ध के फिर से न्यूक्लियर हो जाने का खतरा पैदा हो गया था. अमेरिका की चिंता तो तब और बढ़ गई जब भारत के मिसाइल पाकिस्तान के नूर खान एयर बेस तक पहुंच गए. पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों की देख-रेख करने वाला मुख्यालय नूर खान एयर बेस के आस-पास ही है.
NYT के अनुसार वेंस और रुबियो को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करने वाली बात यह थी कि पाकिस्तानी और भारतीय वायु सेना के बीच गंभीर हवाई लड़ाई शुरू हो गई थी. पाकिस्तान ने भारत की शक्ति परखने के लिए भारत के हवाई क्षेत्र में 300 से 400 ड्रोन भेजे थे. लेकिन चिंता का सबसे बड़ा कारण शुक्रवार देर रात आया, जब पाकिस्तान के रावलपिंडी में नूर खान एयर बेस पर विस्फोट हुए, जो इस्लामाबाद से सटा हुआ सैन्य अड्डे वाला शहर है. नूर खान एयर बेस से इस्लामाबाद की दूरी मात्र 10 से 15 किलोमीटर है. एक सुपरसोनिक मिसाइल इस दूरी को 3 से 4 या 4 से 5 सेकेंड में तय कर सकता है.
नूर खान एयर बेस पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठान है. यह पाकिस्तान की सेना का सेंट्रल ट्रांसपोर्ट हब है. यहां से ही पाकिस्तानी विमान हवा में ईंधन भरते हैं. यह केंद्र पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को उड़ान भरने में मदद करता है.
इसके अलावा जो बेहद अहम बात है वो यह है कि यह केंद्र पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान डिवीजन के मुख्यालय से भी कुछ ही दूरी पर है. स्ट्रैटेजिक प्लान डिवीजन पाकिस्तान की वो ईकाई है जो देश के परमाणु शस्त्रागार की देखरेख और सुरक्षा करता है. माना जाता है कि पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार में लगभग 170 या उससे अधिक परमाणु बम शामिल हैं. यह भी माना जाता है कि ये हथियार पूरे देश में फैले हुए हैं.
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से लंबे समय से परिचित एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने शनिवार को कहा कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा डर यह है कि उसके न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी को नष्ट कर दिया जाएगा. इस पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने NYT को बताया कि नूर खान एयरबेस पर पर भारत के मिसाइल हमले को इस चेतावनी के रूप में समझा गया हो सकता है कि भारत ऐसा कर सकता है.
यानी कि नूर खान एयर बेस पर भारत के हमले का यह अर्थ निकाला गया है कि भारत के पास पाकिस्तान के न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी को तबाह करने की क्षमता है. बता दें कि शनिवार को भारत ने पाकिस्तान पर जवाबी हमला करते हुए उसके कई एयरबेस को निशाना बनाया और तहस नहस कर दिया.
यह स्पष्ट नहीं है कि क्या अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने संघर्ष के तेजी से बढ़ने और संभवतः परमाणु हमले की ओर इशारा किया था. पाकिस्तान की ओर से कम से कम सार्वजनिक रूप से न्यूक्लियर शब्द का स्पष्ट संकेत तब आया था जब पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया के अनुसार प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाई थी. नेशनल कमांड अथॉरिटी एक छोटा समूह है जो यह निर्णय लेता है कि परमाणु हथियारों का उपयोग कैसे और कब किया जाए.
वर्ष 2000 में स्थापित नेशनल कमांड अथॉरिटी की अध्यक्षता नाममात्र रूप से प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें सरकार के वरिष्ठ मंत्री और सैन्य प्रमुख शामिल होते हैं. लेकिन वास्तव में, इस ग्रुप के पीछे की असल शक्ति सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर हैं. हालांकि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस बात से इनकार किया कि नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक हुई.
युद्धविराम की घोषणा से पहले शनिवार को पाकिस्तानी टेलीविजन पर बोलते हुए उन्होंने परमाणु विकल्प को स्वीकार किया लेकिन कहा, “हमें इसे एक बहुत दूर की संभावना के रूप में देखना चाहिए; हमें इस पर चर्चा भी नहीं करनी चाहिए.”
NYT के अनुसार भारत के जवाबी हमले के बाद अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन में उभरती परिस्थितियों पर चर्चा हुई. और शुक्रवार की सुबह तक व्हाइट हाउस ने स्पष्ट रूप से यह निर्णय ले लिया था कि कुछ सार्वजनिक बयान और इस्लामाबाद और दिल्ली में अधिकारियों को महज कुछ कॉल पर्याप्त नहीं थे. इधर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के हस्तक्षेप का कोई खास असर नहीं हुआ.
फॉक्स न्यूज के साथ अपने साक्षात्कार के दौरान, वेंस ने यह भी कहा था कि जब दो परमाणु शक्तियां आपस में टकराती हैं तो हमें चिंता होती है. उन्होंने आगे कहा कि “हम जो कर सकते हैं, वह यह है कि इन देशों को थोड़ा तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित करें.”
घटनाक्रम से परिचित एक व्यक्ति, जो इस बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने के लिए अधिकृत नहीं था, के अनुसार, जेडी वेंस के इस साक्षात्कार के बाद प्रशासन में गंभीर चिंताएं पैदा हो गईं कि संघर्ष नियंत्रण से बाहर हो सकता है.
इसके बाद पहले अनिच्छुक दिख रहे ट्रम्प अधिकारियों ने दक्षिण एशिया में हस्तक्षेप किया. क्योंकि उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के ये कहने के बाद कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष अमेरिका की समस्या नहीं है, ट्रम्प प्रशासन को चिंता हुई कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है.
बता दें कि 7 मई को भारत की ओर से पाकिस्तान पर जवाबी हमले के बाद 10 मई को शाम 5 बजे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के बाद भारत-पाकिस्तान ने सीजफायर का ऐलान किया है.
वहीं CNN के अनुसार ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार की सुबह अमेरिका को “खतरनाक खुफिया जानकारी” मिली. हालांकि उन्होंने इसकी संवेदनशीलता के कारण खुफिया जानकारी की प्रकृति का खुलासा नहीं किया, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया कि यह शीर्ष अमेरिकी नेतृत्व को तत्काल कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया. इस काम में वेंस, अंतरिम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री मार्को रुबियो और व्हाइट हाउस की चीफ ऑफ स्टाफ सूजी विल्स शामिल थीं.
सीएनएन के अनुसार, वेंस ने पीएम मोदी को फोन करने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जानकारी दी. फोन कॉल के दौरान, वेंस ने पीएम को सप्ताह के अंत तक “तनाव में नाटकीय वृद्धि की उच्च संभावना” के बारे में चिंता व्यक्त की. अमेरिका का कथित तौर पर मानना था कि परमाणु हथियारों से लैस दो पड़ोसी देशों के बीच संवाद नहीं हो रहा था. इस दौरान अमेरिका ने बातचीत फिर से शुरू करवाने में अपनी भूमिका को आवश्यक समझा.
यह वेंस के लिए अचानक बदलाव का संकेत था. जिन्होंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि अमेरिका ऐसे युद्ध में शामिल नहीं होने जा रहा है, जो “मूल रूप से हमारा कोई काम नहीं है”. लेकिन शनिवार को वेंस ने पीएम मोदी से पाकिस्तान से सीधे संपर्क करने और “तनाव कम करने के विकल्पों पर विचार करने” का आग्रह किया.
मार्को रुबियो और विदेश विभाग के अन्य अधिकारियों ने नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने समकक्षों को भी फोन किया. हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन वार्ता का हिस्सा नहीं था, उनकी भूमिका दोनों देशों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने तक ही सीमित थी.