Pitru Paksha 2025: चंद्र ग्रहण के दिन बनेगा दुर्लभ संयोग, पितृ पूजन के लिए क्यों है सबसे शुभ समय?

हिंदू पंचांग में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। वर्ष 2025 में पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से होगी और इस बार यह और भी खास होने जा रहा है क्योंकि इसी दिन चंद्र ग्रहण का दुर्लभ संयोग बन रहा है।

ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि जब ग्रहण किसी धार्मिक कालखंड से जुड़ता है तो उसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। पितृ पक्ष की शुरुआत में लगने वाला चंद्र ग्रहण इसे और भी शुभ बना देगा। कहा जा रहा है कि इस बार किया गया पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म पूर्वजों को अत्यधिक तृप्त करेगा और साधक को विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होगी।

पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान का विधान सुबह से दोपहर तक के समय में अधिक शुभ माना जाता है। लेकिन इस वर्ष ग्रहण काल के कारण विशेष समय का महत्व और बढ़ जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण काल में किए गए जप-तप और दान का प्रभाव कई गुना अधिक होता है। ऐसे में पितरों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए यह काल अद्वितीय अवसर लेकर आ रहा है।

इस बार लोग गंगा स्नान, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन जैसे कर्मों के साथ-साथ ग्रहण के समय मंत्र जप और दीपदान भी कर सकते हैं। पंडितों का कहना है कि ऐसा करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि घर में समृद्धि और शांति भी बनी रहती है।

पितृ पक्ष को लेकर मान्यता है कि इस अवधि में किए गए कर्म पितरों तक सीधा पहुंचते हैं और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जीवन की बाधाओं को दूर करते हैं। 2025 का यह पितृ पक्ष खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दुर्लभ खगोलीय घटना से जुड़ा हुआ है, जो इसे शुभ और फलदायी बना रही है।

धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो इस बार का पितृ पक्ष न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खास रहेगा, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सफलता पाने के लिए भी बेहद उपयोगी साबित हो सकता है।

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