हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व माना गया है। यह समय अपने पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का होता है। मान्यता है कि इन दिनों में पितरों की आत्मा पृथ्वी पर आती है और उनके नाम से किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य से वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से होगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025 को अमावस्या के दिन होगा।
पंडितों और ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, पितृपक्ष के पूरे पखवाड़े में श्राद्ध करना लाभकारी होता है, लेकिन इनमें से कुछ विशेष तिथियां बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन दिनों को किसी भी हालत में भूलना नहीं चाहिए।
1. अष्टमी तिथि – पितृपक्ष की अष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन श्राद्ध करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। जिनके पूर्वजों की मृत्यु अष्टमी को हुई हो, उनके लिए यह तिथि अनिवार्य है।
2. एकादशी तिथि – पितृपक्ष की एकादशी को किया गया श्राद्ध विशेष पुण्यदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन तर्पण करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है और संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. अमावस्या तिथि – पितृपक्ष का अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन वे सभी लोग श्राद्ध कर सकते हैं, जिन्हें अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। अमावस्या पर किया गया श्राद्ध सभी पितरों को तृप्त करता है।
श्राद्ध करने के दौरान दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करना चाहिए और पितरों के नाम से ब्राह्मणों को भोजन व दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है। साथ ही, इस समय पवित्रता और नियमों का पालन करना जरूरी है।
पितृपक्ष 2025 में अष्टमी, एकादशी और अमावस्या तिथि को विशेष रूप से याद रखना चाहिए। इन पर श्रद्धा और भक्ति से किया गया श्राद्ध न केवल पितरों को तृप्त करता है बल्कि परिवार के जीवन में सुख-समृद्धि भी लाता है।