चंदौली : नियामताबाद विकास खंड के चंद्रखा गांव में सरकारी योजनाओं की ‘क्रिएटिविटी’ एक नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. यहां बना सामुदायिक शौचालय न केवल आधा-अधूरा रहा बल्कि जब बना भी तो उसमें ऐसा नवाचार देखने को मिला कि ग्रामीणों के होश उड़ गए शौचालय में कमोड पत्थर या चीनी मिट्टी का नहीं बल्कि प्लास्टिक का लगा दिया गया.
दरअसल शुरुआत में यह शौचालय महीनों तक अधूरा पड़ा रहा. न पानी और न ही कोई सुविधा यानी नाम भले “सामुदायिक शौचालय” हो पर यह खुद भी ‘शौच’ करने लायक नहीं था। जब मीडिया की नजर पड़ी तो विभाग की नींद टूटी और आनन-फानन में निर्माण कार्य पूरा कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई.
अब आते हैं असली ‘सीट’ पर शौचालय की सीट। आम तौर पर यह पत्थर या पोर्सिलेन की होती है लेकिन यहां सस्ता सुंदर और टिकाऊ का नया मॉडल लागू करते हुए प्लास्टिक की सीट लगाई गई. ग्रामीणों का कहना है कि शायद संबंधित अफसरों और ग्राम प्रधान को यह लगा होगा कि अरे.कौन झांक कर देखेगा कि सीट प्लास्टिक की है या पत्थर की?
लेकिन जिम्मेवारो की यह सीट-नीति पब्लिक की पारखी नजर से नहीं बच सकी.मीडिया के माध्यम से ग्रामीणों ने इस ‘प्लास्टिक पॉलिटिक्स’ की पोल खोल दी.अब विभागीय अधिकारी मामले की जांच और सख्त कार्रवाई का रटी-रटाई लाइन दोहरा रहे हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि भ्रष्टाचार ने शौचालय को भी नहीं छोड़ा। जनता की गाढ़ी कमाई से बने इस शौचालय में जब कोई बैठता है तो लगता है जैसे सीट नहीं घोटाले पर बैठा है.
अब सवाल यह है कि क्या विभाग जांच के नाम पर इस मामले को भी ‘प्लास्टिक की फाइल’ में दबा देगा?
या फिर वाकई कोई अधिकारी पत्थर की नीयत दिखाएगा?