WhatsApp से समन नहीं भेज सकती पुलिस, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की हरियाणा की याचिका

सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार ने एक आवेदन दाखिल कर अनुमति मांगी थी कि पुलिस जांच के लिए भेजा जाने वाला समन व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए भेज सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार का यह आवेदन खारिज करते हुए कहा कि पुलिस जांच के लिए समन को भौतिक रूप में ही भेजा जाना चाहिए. यह आदेश 16 जुलाई को पारित किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इसे बुधवार को अपलोड किया गया.

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न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि BNS की धारा 35 के तहत इलेक्ट्रॉनिक तरीके से नोटिस भेजना एक वैध तरीका है. उन्होंने कहा कि कानून में इसे जानबूझकर शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि कानून बनाने वालों की स्पष्ट मंशा यही थी कि नोटिस भौतिक रूप में ही भेजा जाए.

इस मामले की सुनवाई पर दिया गया आदेश

राज्य ने सतिन्दर कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित 21 जनवरी के आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कोर्ट ने विभिन्न अपराधों के तहत जांच का सामना कर रहे अभियुक्तों के अधिकारों की सुरक्षा में कमियों को दूर करने की मांग की थी.

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत पुलिस द्वारा जारी नोटिस का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं. पीठ ने कहा कि खासकर उन मामलों में जिसके तहत किसी व्यक्ति को जांच में शामिल होना आवश्यक है. जिसके बाद व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित हो सकता है.

हरियाणा सरकार का तर्क

हरियाणा ने तर्क दिया कि बीएनएसएस के तहत अदालती नोटिस जारी करने और गवाहों को बुलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधन निर्धारित किए गए थे, वही धारा 35 पर भी लागू होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति का सिर्फ जांच में भाग लेना है न कि गिरफ्तार होना.

वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा ने कहा कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों से भेजा गया नोटिस बीएनएसएस की धारा 35 के तहत आदेश को पूरा करने का माध्यम नहीं माना जाता. उन्होंने बीएनएसएस के उन प्रावधानों का हवाला दिया जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से संबंधित हैं लेकिन उन्हें किसी मामले की जांच प्रक्रिया से बाहर रखा गया है.

हरियाणा ने इन प्रावधानों का भी दिया हवाला

हरियाणा ने बीएनएसएस की धारा 64(2) के एक प्रावधान का हवाला दिया था, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अदालती समन की तामील की अनुमति देता है. हरियाणा ने बताया कि इसी प्रकार धारा 71 गवाहों को बुलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की अनुमति देती है. लेकिन अदालत ने इसके अंतर पर जोर देते हुए कहा कि बीएनएसएस की धारा 64(2) का प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक संचार के जरिए भी समन भेजने का अधिकार देता हो, लेकिन उस पर अदालत की मुहर लगी होना अनिवार्य होता है. बीएनएसएस की धारा 71 को लेकर अदालत ने कहा कि किसी भी उल्लंघन की स्थिति में इसका किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ता. उन्होंने कहा जबकि बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस का उल्लंघन, स्वतंत्रता पर तत्काल असर डालता है.

पालन न करने पर व्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा

अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्ति के स्वतंत्र जीवन जीने और अपने जीवन की रक्षा करने का अधिकार देता है. पीठ द्वारा निकाले गए निष्कर्ष में कहा गया कि बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस की तामील इस तरह से की जानी चाहिए जिससे इस मूल अधिकार की रक्षा हो सके, क्योंकि नोटिस का अनुपालन न करने से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है.

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