पिछले चार साल दक्षिण एशिया के लिए बेहद उथल-पुथल भरे साबित हुए हैं। भारत के चार पड़ोसी देशों—अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल—में सत्ता उलटफेर और राजनीतिक संकट ने पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन घटनाओं ने साफ कर दिया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और शासन व्यवस्था इन देशों में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
सबसे पहले 2021 में अफगानिस्तान में बड़ा बदलाव देखने को मिला। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और अशरफ गनी सरकार का अंत हो गया। यह तख्तापलट न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया के लिए झटका था। महिलाओं के अधिकार, लोकतांत्रिक संस्थाएं और मानवाधिकार की स्थिति अचानक पीछे चली गई।
इसके बाद 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराया। महंगाई और विदेशी कर्ज़ ने जनता का जीवन असहनीय बना दिया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुए और आखिरकार उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। यह भी एक तरह का सत्ता परिवर्तन ही था, जिसने दक्षिण एशिया में अस्थिरता को और बढ़ाया।
2024 में बांग्लादेश में भी राजनीतिक माहौल बिगड़ा। लंबे समय से सत्ता में रही शेख हसीना सरकार को भारी विरोध झेलना पड़ा। विपक्षी आंदोलनों और जनदबाव ने शासन की नींव हिला दी। देश में सत्ता संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता अभी भी जारी है।
अब 2025 में नेपाल में हालात विस्फोटक हो गए हैं। “Gen-Z आंदोलन” के नाम से युवाओं का गुस्सा सड़कों पर है। आर्थिक संकट, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन अब नेताओं की पिटाई तक पहुँच चुका है। उप प्रधानमंत्री विष्णु प्रसाद पौडेल पर हुए हमले ने संकेत दे दिया है कि नेपाल की जनता मौजूदा सत्ता से पूरी तरह नाखुश है और बदलाव चाहती है।
चारों देशों की इन घटनाओं ने भारत के लिए भी कूटनीतिक और रणनीतिक चिंता बढ़ा दी है। अस्थिर पड़ोसी न केवल सुरक्षा के लिहाज़ से चुनौती पेश करते हैं बल्कि क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और विकास को भी प्रभावित करते हैं। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि दक्षिण एशिया में लोकतंत्र और स्थिरता किस दिशा में आगे बढ़ती है।