लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अमेरिका की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान बेरोजगारी, शिक्षा और टेक्नोलॉजी जैसे मुद्दों पर बात की. उन्होंने कहा कि पश्चिम और भारत दोनों ही रोजगार संकट से जूझ रहे हैं. वहीं, चीन-वियतनाम जैसे कुछ देश ऐसी कठिनाइयों का सामना नहीं कर रहे हैं. राहुल गांधी के इस बयान पर सियासत गरमा गई. बीजेपी के कद्दावर नेता गिरराज सिंह ने उनपर हमला बोला और आरोप लगाया है कि वह भारत को गाली दे रहे हैं.
गिरिराज सिंह ने कहा कि भारत की तारीफ करने के बजाय राहुल गांधी भारत के बाहर जाकर भारत को ही गाली दे रहे हैं, चीन की तारीफ कर रहे हैं. लगता है कि वह चीन के पैसों पर ही पल रहे हैं, तभी वह बाहर जाकर चीन का प्रचार कर रहे हैं. ऐसे लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाना चाहिए जो भारत के बाहर जाकर भारत की निंदा करते हैं और दुश्मन देशों की तारीफ करते हैं.’
‘काग्रेस की फूट डालो और राज करो की रणनीति’
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा, ‘राहुल गांधी चीन के लिए बहुत अधीर रहते हैं और उन्हें भारत का अपमान करने की आदत है. दुनिया जानती है कि अगस्त 2024 तक चीन में 17 फीसदी युवा बेरोजगारी दर है. तो सवाल यह है कि क्या चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ उनका एमओयू है, जिसकी वजह से वह हमेशा चीन के लिए बोलते हैं और भारत की बात नहीं करते हैं? राहुल यहीं नहीं रुके, वह जमानत पर बाहर होने की वजह से भारतीय न्याय व्यवस्था पर हमला करते हैं. वह भारत में सामाजिक तनाव की भविष्यवाणी सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि यह उनकी फूट डालो और राज करो की रणनीति है.’
देवी-देवताओं का अपमान
उन्होंने कहा, ‘सैम पित्रोदा कहते हैं कि वह अब ‘पप्पू’ नहीं रहे. वह अब बहुत बुरे हो गए हैं क्योंकि उनके सभी बयान भारत के खिलाफ झूठ को दर्शाते हैं, उनके सभी बयान एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाते हैं जो समाज को बांटना चाहता है और जो चीन के लिए बोलना चाहता है. वह हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करते हैं और कहते हैं कि इसका मतलब भगवान नहीं है. यही वजह है कि इंडिया गठबंधन हमेशा सनातन के खिलाफ है.’
राहुल गांधी ने क्या कहा?
दरअसल, लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि अमेरिका और यूरोप समेत पश्चिमी देशों ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बड़े पैमाने पर खत्म कर दिया है और इसे चीन और वियतनाम जैसे देशों के हवाले कर दिया. भारत को प्रोडक्शन के लिए अपने नजरिए पर दोबारा सोच-विचार करने की जरूरत है. भारत यह आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता कि मैन्युफैक्चरिंग अन्य देशों का सेक्टर होगा. हमें अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को इस तरह से विकसित करने की जरूरत है जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप हो.