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रायपुर में तपस्या का प्रत्याखान व अभिनंदन समारोह का आयोजन, मुनिश्री सुधाकर ने बताया तपस्या क्यों और कैसे करना महत्वपूर्ण

रायपुर। राजधानी रायपुर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी व मुनिश्री नरेश कुमार जी की विशेष प्रेरणा से सोमवार को छठवें मासखमण अर्थात 31 उपवास ( आहार का पूर्णतः त्याग ) की तपस्या का प्रत्याखान व अभिनंदन समारोह श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, रायपुर द्वारा आयोजित किया गया।

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जिसे लेकर पधारे मासखमण तपस्या आराधक तपस्वी श्री अभिलेष जी कटारिया। मंगलाचरण तेरापंथ महिला मंडल, रायपुर व संचालन सूर्य प्रकाश बैद द्वारा किया गया। अभिनंदन समारोह में सभा, तेमम, तेयुप के अध्यक्षों व टीपीएफ मंत्री एवं पारिवारिक जनो ने अपनी-अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए तपस्या का अनुमोदन किया। मुनिश्री सुधाकर जी ने समता को धारण करते हुए तपस्यारत तपस्वी श्री अभिलेष जी कटारिया की तपस्या की अनुमोदना करते हुए उनके आध्यात्मिक जीवन हेतु आध्यात्मिक मंगलकामना की। मुनिश्री ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को बोधित करते हुए कहा कि तपस्या आत्मकल्याण के निमित्त होनी चाहिए न कि बाह्य आडम्बर के हेतु। ज्ञान, दर्शन, चारित्र का जितना महत्व हमारे जीवन में होता है उतना ही तप का भी होता है।

मुनिश्री ने आगे कहा कि तपस्या क्यों करनी यह विशेष ध्यान रखना चाहिए। तपस्या तो केवल अपनी आत्मा के कल्याण हेतु अन्य भावनाओं को गौण करते हुए करनी चाहिए। तपस्यारत तपस्वी को यह भावना रखनी चाहिए कि मैं तो निमित्त मात्र हूं तपस्या तो देव-गुरु-धर्म के प्रताप अर्थात पुण्य के उदय से हो रही है। तपस्या समता भाव, संयम अनुपालना व जगत के सभी प्राणीमात्र के प्रति प्रेम भाव के साथ करनी चाहिए। तपस्या त्याग की भावना से करनी चाहिए न कि कामना की भावना से। कामना या इच्छा प्राप्ति की भावना से की गई तपस्या का फल तो मिलेगा परंतु उसका प्रभाव कम रहेगा। अभिनंदन समारोह में विशेष रूप से दुर्ग से पधारे तपस्वी श्री पूनम जी संचेती भी उपस्थित थे उनकी आज 30 की तपस्या आगे बढ़ने की भावना के साथ गतिमान है।

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