महागठबंधन में सीट बंटवारे की तैयारी! रविवार को तेजस्वी के साथ CPI नेता की बड़ी बैठक

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं. सत्ता रूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी. दोनों ही गठबंधनों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर पेच फंसा हुआ है. दोनों गठबंधन के घटक दल अधिक सीट हासिल करने के लिए अपने-अपने तरीके से अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. इस बीच महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर महत्वपूर्ण सूचना सामने आ रही है.

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सीपीआई महासचिव डी राजा रविवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव के साथ सीट बंटवारे के मुद्दे पर बैठक करेंगे. सीपीआई महासचिव डी राजा ने ईटीवी भारत से कहा, “एनडीए को हराने के लिए सभी विपक्षी दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा. बिहार चुनाव में हम महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे. हमें उम्मीद है कि सभी सहयोगियों के बीच सम्मानजनक सीट बंटवारे पर सहमति बन जाएगी.”

भाकपा ने शुक्रवार को पंजाब में 21 से 25 सितंबर तक होने वाली पार्टी की 25वीं कांग्रेस से पहले अपना राजनीतिक प्रस्ताव जारी किया. वामपंथी दल ने शुक्रवार को कहा कि भाजपा के मुकाबले एक मजबूत, टिकाऊ और वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए कांग्रेस सहित विपक्ष में अधिक सम्मानजनक, लोकतांत्रिक और जमीनी स्तर पर संचालित नेतृत्व दृष्टिकोण आवश्यक है.

भाकपा के राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है, “गठबंधन को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा जिससे इसकी प्रभावशीलता सीमित हो गई. सीट बंटवारे पर बातचीत सबसे स्पष्ट और लगातार विवाद का विषय रही. अपने क्षेत्रीय आधार और नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं की रक्षा करते हुए, कई घटक दल लंबे समय तक और कभी-कभी कटु सौदेबाजी में लगे रहे. इसके परिणामस्वरूप अक्सर अधूरे समझौते हुए जिससे एक निर्बाध और सुसंगत अभियान में बाधा आई.”

इसमें आगे कहा गया है कि सीट बंटवारे के अलावा, गठबंधन में समन्वय का भी आभाव है. सीपीआई के प्रस्ताव में कहा गया है, “कई पार्टियां कुछ क्षेत्रों में स्वायत्त रूप से या एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में काम करती रहीं, जिससे सामूहिक ताकत को नुकसान पहुंचा, जो एकता से मिल सकती थी.” इसने स्वीकार किया कि गठबंधन में वैचारिक सामंजस्य की बुनियादी कमी है.

भाकपा के राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया, “सभी सदस्य भाजपा के अधिनायकवाद और सांप्रदायिक एजेंडे का विरोध करते थे, जो हमारे संविधान की दृष्टि के विपरीत है, लेकिन उनकी राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि में व्यापक अंतर था. इस वैचारिक असंगति के कारण एक ऐसा एकीकृत नीतिगत एजेंडा प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण हो गया जो भाजपा विरोधी भावना से परे व्यापक विश्वास जगा सके. भविष्य में, इस अनुभव से सबक लिया जाना चाहिए और एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम के माध्यम से विपक्षी एकता को मजबूत करने के प्रयास किए जाने चाहिए.”

केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से राहुल गांधी की उम्मीदवारी का उल्लेख करते हुए, भाकपा के प्रस्ताव में कहा गया कि भाकपा और वाम दलों के खिलाफ राहुल गांधी की उम्मीदवारी गहन विपक्षी एकता के लिए बार-बार और टालने योग्य बाधा बन गई है,

प्रस्ताव में कहा गया है, “भाकपा का मानना है कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता होने के नाते, राहुल गांधी को भाजपा के खिलाफ सीधे चुनाव लड़कर एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. भाकपा का मानना है कि भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प बनाने के लिए कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष में एक अधिक सम्मानजनक, लोकतांत्रिक और जमीनी स्तर पर संचालित नेतृत्वदृष्टिकोण आवश्यक है.”

भाकपा के राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है, “भाजपा शासन में अर्थव्यवस्था और भी असमान, बहिष्कृत और शोषणकारी हो गई है. बेरोजगारी रहित विकास, कृषि संकट, श्रम का अनौपचारिकीकरण, सार्वजनिक सेवाओं का कमज़ोर होना और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर हमले ने लोगों का जीवन बदतर बना दिया है. केंद्र सरकार असहमति को दबाते हुए और विपक्ष को खंडित करते हुए कॉर्पोरेट हितों की सेवा जारी रखे हुए है.”

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