डीपफेक पर लगाम लगाने की तैयारी: डेनमार्क की पहल, जल्द ही वैश्विक स्तर पर आएंगे सख्त कानून

डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से किसी व्यक्ति की आवाज, चेहरा, हाव-भाव, या पूरा वीडियो नकली रूप में तैयार किया जाता है. इस तरह कि वो बिल्कुल असली लगे. जैसे कि किसी नेता की आवाज या चेहरा लगाकर उसे ऐसा कुछ कहते हुए दिखाना जो उसने कभी कहा ही नहीं.

डेनमार्क ने सबसे पहले यह महसूस किया कि डीपफेक न सिर्फ लोकतंत्र, बल्कि समाज, शिक्षा और सुरक्षा के लिए भी खतरा बन चुका है.

इसी को देखते हुए वहां सरकार ने डीपफेक पर नियंत्रण के लिए कड़े कानून लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कानून में इन बातों को शामिल किया जा रहा है:

बिना अनुमति किसी की आवाज़ या छवि का नकली इस्तेमाल दंडनीय होगा

डीपफेक वीडियो या ऑडियो फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ऐसे कंटेंट हटाने की जिम्मेदारी

डीपफेक कितना बड़ा खतरा है?

राजनीतिक झूठ: चुनावों के दौरान नेताओं के फर्जी वीडियो वायरल कर जनता को गुमराह किया जा सकता है.

सोशल ब्लैकमेलिंग: किसी की इज्जत को नुकसान पहुंचाने के लिए फर्जी अश्लील वीडियो बनाए जा सकते हैं.

फर्जी खबरें: किसी भी खबर को सच की तरह दिखाकर दंगा-फसाद भड़काए जा सकते हैं.

साइबर अपराध: बैंकिंग या पहचान चोरी जैसे अपराधों में भी डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है.

आम लोग क्या सावधानी बरतें?

कोई भी सनसनीखेज वीडियो या ऑडियो देखने के बाद तुरंत शेयर न करें.

स्रोत की पुष्टि करें. क्या वह वीडियो किसी अधिकृत न्यूज़ एजेंसी से है?

शक होने पर Google Reverse Image Search या InVID जैसे टूल्स से जांच करें.

किसी के बारे में ऑनलाइन वायरल चीजों पर आंख बंद कर विश्वास न करें.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर संदिग्ध कंटेंट को रिपोर्ट करें.

क्या है इसकी वैश्विक जरूरत?

ग्लोबल स्तर पर डीपफेक तकनीक को लेकर चिंता बढ़ रही है. अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और भारत जैसे देश अब इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विषय मान रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मांग है कि एक वैश्विक फ्रेमवर्क बने, जिसमें हर देश अपने स्तर पर कानून लागू कर सके.

Advertisements