HC जजों के कॉफी ब्रेक पर सवाल, सुप्रीम कोर्ट में उठा समय की बर्बादी का मुद्दा..

आप भी अक्सर ऑफिस में या अपने काम के दौरान कॉफी ब्रेक पर जाते होंगे, काम के दौरान 2 से 3 बार रिफ्रेश होने के लिए कॉफी ब्रेक लेते होंगे, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के जजों के ज्यादा कॉफी ब्रेक लेने का मामला उठा है.

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सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के जजों का ज्यादा और गैर जरूरी कॉफी ब्रेक लेने का मामला मंगलवार को सामने आया, जिसके बाद उनके परफॉर्मेंस ऑडिट की मांग की गई. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ कई शिकायतें मिल रही थीं, इसी के चलते यह मामला उठाया गया है. जस्टिस कांत ने हाई कोर्ट के जजों को लेकर कहा, कुछ जज हैं जो काफी हार्ड वर्क करते हैं, लेकिन कुछ जज ऐसे भी हैं जो गैर जरूरी कॉफी ब्रेक लेते हैं, कभी कोई-कभी कोई ब्रेक लेते हैं. फिर लंच के लिए जो घंटा दिया जाता है वो किस काम का है. हमें हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ काफी शिकायतें मिल रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने आगे कहा, यह एक बड़ा मुद्दा है जिस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है. जस्टिस कांत ने सवाल पूछते हुए कहा, हाईकोर्ट के जजों की यह क्या परफॉरमेंस है? हम कितना खर्च कर रहे हैं और क्या आउटपुट हमें मिल रहा है. अब हाई टाइम है कि हम परफॉरमेंस ऑडिट करें.

किस मामले में की टिप्पणी?

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी 4 व्यक्तियों की याचिका के बाद सामने आई है. इन 4 व्यक्तियों ने शीर्ष अदालत का रुख करते हुए दावा किया था कि झारखंड हाई कोर्ट ने साल 2022 में दोषसिद्धि और आजीवन कारावास के खिलाफ आपराधिक अपील पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, लेकिन फैसला नहीं सुनाया गया.

उनकी तरफ से पेश वकील फौजिया शकील ने कहा कि मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के बाद, हाईकोर्ट ने 5 और 6 मई को उनके मामलों में फैसले सुनाए, जिसमें चार में से तीन को बरी कर दिया गया, जबकि बाकी में खंडित फैसला (split verdict) आया और मामले को चीफ जस्टिस को भेजा गया और उन्हें जमानत दे दी गई. आज सुबह, वकील ने बताया कि एक हफ्ते पहले हाई कोर्ट ने फैसला सुनाए जाने के बावजूद, बरी किए गए तीन व्यक्तियों को जेल से रिहा नहीं किया और फैसले में, हाई कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखने की तारीख का उल्लेख भी नहीं किया.

रिहाई में हुई देरी

बेंच ने इस बात पर आपत्ति जताते हुए झारखंड सरकार के वकील से इन 4 व्यक्तियों को लंच ब्रेक से पहले तुरंत रिहा करने को कहा और मामले को दोपहर दो बजे के बाद के लिए स्थगित कर दिया गया. जब मामला सुनवाई के लिए आया, तो राज्य के वकील ने बेंच को सूचित किया कि दोषियों को रिहा कर दिया गया है और निचली अदालतों से रिहाई आदेश न मिलने के कारण प्रक्रिया में देरी हुई है. वकील फौजिया ने कहा कि यह शीर्ष अदालत की वजह से है कि वे चारों “ताजी हवा में सांस ले रहे हैं” और अगर हाई कोर्ट ने समय पर फैसला सुनाया होता, तो वो तीन साल पहले ही जेल से बाहर आ गए होते.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

जस्टिस कांत ने इसे जज का कर्तव्य बताया और कहा, हमें दुख है कि न्यायिक व्यवस्था की वजह से इन लोगों को इतने लंबे समय के लिए जेल में रहना पड़ा. बेंच के आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ता पिला पाहन, सोमा बदांग, सत्यनारायण साहू को ट्रायल कोर्ट ने हत्या और अन्य आरोपों में दोषी ठहराया था और बाद में हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था और धर्मेश्वर ओरांव के मामले में, जिन्हें बलात्कार के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था, एक खंडित फैसला आया था लेकिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था.

सभी चार व्यक्ति एससी/एसटी या ओबीसी से हैं. कोर्ट ने इस याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट से संबंधित एक ऐसे ही मामले के साथ टैग किया जहां फैसले की घोषणा की तारीख और शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर फैसला अपलोड होने की तारीख के बारे में जानकारी मांगी गई थी. बेंच ने कहा, हमें ऐसा लगता है कि उपर्युक्त आदेशों में देखे गए मुद्दों के लिए इस अदालत को विश्लेषण और अनिवार्य दिशानिर्देशों की जरूरत होगी, ताकि दोषियों या विचाराधीन कैदियों को न्याय सिस्टम में विश्वास खोने के लिए मजबूर न किया जा सके.

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