रायबरेली : केन्द्र व राज्य सरकारों ने भले ही नारी सशक्तिकरण के लिए कई नियम कानून व प्राविधान स्थापित किए हो लेकिन त्रिस्तरीय पंचायतों में नारी सशक्तिकरण पर नर हावी हैं। चुनाव के दौरान पत्नी को सामने कर उन्हें माननीय का दर्जा दिलाने के बावजूद कार्यक्षेत्र में उनका कोई हस्तक्षेप नजर नहीं आता है।
ग्राम पंचायतों में अधिकांश महिला माननीयों के स्थान पर उनके पति या पुत्र ही प्रधानी या सदस्यता के काम संभालते दिख जाते हैं।जिले की अगर बात करें तो यहां कुल 980 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें से 419 ग्राम पंचायतों में महिला प्रधान हैं। लेकिन कुछ को अगर छोड़ दें तो जिले की अधिकांश पंचायतों की बैठक से लेकर जो प्रमुख काम महिला प्रधानों को करने चाहिये, वह उनके पति कर रहे हैं। यहां तक कि गांव के विकास कार्यों के लिये भी महिला प्रधानों के पति ही अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से मुलाकात करते हैं।
अधिकारियों का भी यही मानना है कि महिला प्रधानों की जगह उनके पतियों का प्रभाव ही रहता है।एक ओर मिशन शक्ति व बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को गति देने के लिए जिला प्रशासन लगातार कोशिश कर रहा है लेकिन जिले में कई ऐसी ग्राम पंचायतें हैं जहां महिला ग्राम प्रधान होने के बावजूद उनके पति या पुत्र प्रधानी करते नजर आते हैं।
नारी सशक्तिकरण के प्रयासों को उस वक्त गंभीर झटका लगता है जब प्रशासन या दूसरे विभागों की तरफ से आयोजित होने वाली बैठकों में भी महिला जनप्रतिनिधि के स्थान पर उनके पति या पुत्र ही शिरकत करते हैं। हालांकि उच्च स्तर पर इसमें कमी आई है। गांवों के लिए आने वाली योजनाओं में निरीक्षण, समीक्षा एवं दूसरे कार्यों की जिम्मेदारी भी उनके पति ही संभालते दिखते हैं। महिला माननीय घरों तक ही सीमित दिख रही हैं।