बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अप्रैल को पटना पहुंच रहे हैं. ये उनका तीसरा बिहार दौरा है. बिहार के प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और जिला अध्यक्षों के बदलने के बाद कांग्रेस अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने की कवायद में जुट गई है. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ के बहाने राहुल गांधी बिहार में AAPDA पॉलिटिक्स को सियासी धार देते नजर आएंगे. अति पिछड़ा, पसमांदा, दलित-आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है.
कांग्रेस ने बिहार में पार्टी की कमान दलित समाज से आने वाल राजेश कुमार को सौंप रखी है. राहुल गांधी 7 अप्रैल को पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में अतिपिछड़े वर्ग को संबोधित करेंगे. राहुल गांधी सामाजिक न्याय के मुद्दे को धार देने के साथ-साथ कर्पूरी ठाकुर की सियासी स्टाइल से अतिपिछड़ों के विश्वास जीतने की स्ट्रैटेजी है. अतिपिछड़ी जातियों पर फोकस करके कांग्रेस बिहार में नीतीश कुमार को 2025 में मात देने की कवायद में है.
राहुल गांधी की ‘AAPDA’पॉलिटिक्स
राहुल गांधी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर ओबीसी वर्ग को साधने की कवायद में है, लेकिन बिहार में कांग्रेस का फोकस ‘AAPDA’ पॉलिटिक्स पर है. इसका मतलब अतिपिछड़ा, पसमांदा मुस्लिम और दलित-आदिवासी वोटर हैं. राहुल गांधी बिहार में इन्हीं वोटों को ध्यान में रखते हुए सियासी तानाबाना बुन रहे हैं. बिहार में राहुल गांधी के सभी दौरे सामाजिक न्याय के मुद्दे को ध्यान में रखकर ही तय किए जा रहे हैं. जनवरी में राहुल गांधी ने पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित किया था और फरवरी में दलित प्रतीक के तौर पर पहचाने जाने वाले जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती में शिरकत की थी.
बिहार में राहुल गांधी ने अपने पिछले दोनों ही दौरे में अनुसूचित जाति और अतिपिछड़े वर्ग से जुड़े हुए लोगों को साधने की वकालत करते नजर आए थे. यही नहीं 50 फीसदी के आरक्षण वाली सीमा को भी तोड़ने की बात उठाई थी और सामाजिक न्याय के एजेंडे को धार दिया था. राहुल गांधी ने अपने पहले दौरे में पसमांदा मुस्लिम महाज के नेता पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी और दशरथ मांझी के बेटे कांग्रेस में शामिल कराकर अपना एजेंडा साफ कर दिया था. अब राहुल गांधी अपने तीसरे दौरे में अतिपिछड़ी जाति को सियासी संदेश देने ही नहीं बल्कि उन्हें कर्पूरी ठाकुर की स्टाइल में जोड़ने की स्ट्रैटेजी अपनाने की दांव चलेंगे.
कर्पूरी ठाकुर की स्टाइल में कांग्रेस
कांग्रेस के बिहार सह प्रभारी सुशील पासी ने टीवी-9 डिजिटल से बात करते हुए बताया कि 7 अप्रैल को राहुल गांधी बिहार में अतिपिछड़ी जातियों को संबोधित करेंगे. साथ ही उनके सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर भी अपनी बात रखेंगे. नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराया, लेकिन अतिपिछड़ी जातियों को उनके वाजिब सामाजिक व राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं सौंपी है. बिहार में अति पिछड़ा, पिछड़ा, दलित और पसमांदा मुस्लिम मिलकर करीब 80 फीसदी आबादी है.
सुशील पासी ने कहा कि बिहार अतिपिछड़ा वर्ग 36 फीसदी के करीब आबादी है, जिसका वोट तो नीतीश कुमार ने लिया, लेकिन उनका हक नहीं दे सके. न ही अतिपिछड़ी जातियों को उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया और न ही राजनीतिक हिस्सेदारी दे सके. सामाजिक और राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से भी पिछड़े हैं, जिनकी लड़ाई राहुल गांधी जमीनी स्तर पर लड़ रहे हैं. बिहार में भी राहुल गांधी अतिपिछड़ी जातियों के इंसाफ की लड़ाई लड़ने का बीड़ा उठाया है, जिसके तहत ही सात अप्रैल को पटना आ रहे हैं.
अतिपिछड़ी जाति बिहार की किंगमेकर
बिहार की सियासत में असली किंगमेकर अतिपिछड़ी जातियां हैं. बिहार में लुहार, कुम्हार, बढ़ई, सुनार, कहांर, मल्लाह जैसी 114 जातियां अतिपिछड़े वर्ग में आती हैं और उनके हाथों में ही सत्ता की चाबी है. अति पिछड़ी जातियों में कद्दावर नेताओं की ग़ैर-मौजूदगी के कारण इन जातियों का वोट विभिन्न पार्टियों के बीच बंट जाता है. प्रदेश में अतिपिछड़ी जातियां छोटी-छोटी जातियों में बंटी हुई हैं, जिनकी आबादी कम है, लेकिन चुनाव में फिलर के तौर पर वो काफी अहम हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर समझिए कि कुम्हार महज एक फीसदी है, जो खुद के दम पर जीत नहीं सकते हैं, लेकिन जब किसी दूसरे वोटबैंक के साथ जुड़ जाते हैं तो एक बड़ी ताकत बन जाते हैं.
कांग्रेस के खिलाफ एक समय कर्पूरी ठाकुर ने अतिपिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़कर सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट किया था. इस फार्मूले पर चलते हुए नीतीश कुमार ने अतिपिछड़ी जातियों की तमाम छोटी-छोटी जातियों को मिलाकर अपना सियासी आधार खड़ा किया. नीतीश कुमार ने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के मुस्लिम और यादव के मजबूत समीकरण को काउंटर करने के लिए अतिपिछड़ी जातियों के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी. बिहार की अतिपिछड़ी जातियों के सहारे नीतीश कुमार दो दशक से सत्ता की धुरी बने हुए हैं.
114 जातियां अतिपिछड़ी जाति में शामिल
बिहार में अतिपिछड़ी जातियों में देखें तो केवट, लुहार, कुम्हार, कानू, धीमर,रैकवार, तुरहा, बाथम, मांझी, प्रजापति, बढ़ई, सुनार, कहार, धानुक, नोनिया, राजभर,नाई, चंद्रवंशी, मल्लाह जैसी 114 जातियां अति पिछड़े वर्ग में आती हैं. इनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति कमज़ोर होने के अलावा भी आबादी का बड़ा हिस्सा होने के बाद भी सियासी प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है. नीतीश कुमार ने तमाम छोटी-छोटी अति पिछड़ी जातियों को मिलाकर अपना सियासी आधार खड़ा किया है. हालांकि, अति पिछड़ी जातियां 36 फीसदी आबादी होने के बाद भी बिहार विधानसभा में महज 7 फीसदी विधायक हैं.
नीतीश को मात देने का कांग्रेस प्लान
जेडीयू के साथ गठबंधन होने के चलते बीजेपी की नजर इसी वोटबैंक पर है. जातिगत जनगणना में जिस तरह से 36 फीसदी अतिपिछड़ी जातियां हैं. ऐसे में अतिपछड़ा वोट बैंक 2025 के विधानसभा चुनाव में बिहार के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है. कांग्रेस की नजर इसी अतिपिछड़े वोटबैंक पर है. राहुल गांधी सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट करके अतिपिछड़ी जातियों को विश्वास को जीतने की कवायद करना चाहते है.
हार में सबसे ज्यादा 63 फीसदी ओबीसी है, जिसमें 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग तो 36 फीसदी अति पिछड़ी जातियां हैं. दलित 19.65 फीसदी, आदिवासी 1.68 फीसदी तो सवर्ण जातियां 15.65 फीसदी हैं. इस लिहाज से बिहार की सियासत में सबसे अहम भूमिका अति पिछड़ी जातियों की होने वाली है, क्योंकि असल किंगमेकर बिहार की यही जातियां हैं. इसीलिए राहुल गांधी की कोशिश अतिपिछड़े जातियों से लेकर पसमांदा मुस्लिम और दलित वोटों को साधकर बिहार में अपनी खोई हुई सियासी आधार फिर से पानी की है.
बिहार में कितनी अहम अतिपिछड़ी जातियां?
आजादी के बाद लंबे समय तक बिहार की सियासत पर सवर्ण जातियों का दबदबा था. कायस्थ लेकर ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार समुदाय के हाथों में ही सत्ता की कमान रही, लेकिन उसके बाद जेपी आंदोलन ने ओबीसी के लिए सियासी दरवाजे खोल दिए. बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह बने थे, लेकिन वो तीन दिन ही कुर्सी पर रह सके और उसके बाद बीपी मंडल को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. वहीं से ओबीसी के लिए मुख्यमंत्री का रास्ता खुला. उनका सियासी प्रभाव मंडल कमीशन के बाद बढ़ा तो फिर अभी तक बोलबाला है. लालू यादव से लेकर राबड़ी देवी और नीतीश कुमार ओबीसी वर्ग से आते हैं.
बिहार में अति पिछड़े वर्ग की आबादी 36 फीसदी है, जिसमें करीब 114 जातियां शामिल हैं. ऐसे में बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग राजनीति में अपनी भागीदारी को लेकर नए सिरे से रास्ता तलाश रहा है, क्योंकि उनकी आबादी के लिहाज से यह कहा जा सकता है कि सत्ता की चाबी अब उनके हाथों में है. नीतीश कुमार की जेडीयू के अतिपिछड़े वर्ग वाले वोटबैंक में भी सेंधमारी की कवायद में कांग्रेस है. राहुल गांधी की पूरा फोकस अब इन्हीं वोटों को साधकर दोबारा से कांग्रेस को खड़े करने की है.