आधुनिक तरीकों से ट्रेनों की सफाई में करा रहा रेलवे, अब तक देशभर में लगे 80 ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट

भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे रेल नेटवर्क में से एक है और अपने यात्रियों को वर्ल्ड क्लास की सुविधाएं देने को लेकर लगातार कोशिश में लगा हुआ है. रेलवे की ओर से यात्रियों को स्वच्छ वातावरण और सुगम यात्रा का अनुभव दिलाने को लेकर कई नई पहल की शुरुआत भी की गई है. इनमें से एक है अलग-अलग जगहों पर ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट (ACWP) लगाया जाना.

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देश में ट्रेनों को साफ-सुथरा रखने, रखरखाव पर खर्च कम करने और पानी की खपत को कम करने के मकसद से ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं. भारतीय रेलवे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपने एक पोस्ट में कहा कि रेलवे की ओर से आधुनिक तरीके के जरिए पानी बचाया जा रहा है. अब तक देशभर में 80 ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट लगाए जा चुके हैं.

ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट यात्रियों को साफ-सुथरा और हाइजेनिक यात्रा का अनुभव दिलाने के मकसद से लगाए जा रहे हैं. यह डिटर्जेंट सोल्यूशन, हाई प्रेशर वाटर जेट और वर्टिकल रोटेटिंग ब्रश का इस्तेमाल करते हुए रेक में कोचों के लिए एक बहुस्तरीय बाहरी सफाई प्रणाली (Multistage External Cleaning System) है. इसके अलावा, इसमें बाहर की धुलाई के लिए पानी के उपयोग के लिए एक एफ्लुएंट ट्रीटमेंट सिस्टम और वाटर सॉफ्टनिंग प्लांट भी है. एक प्लांट को खड़ा करने की लागत करीब 1.9 करोड़ रुपये है.

कैसे काम करता है वॉशिंग प्लांट

ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट सेंसर पर आधारित होता है और 7 से 8 मिनट में 24 कोचों वाली ट्रेन को आसानी से धुल सकता है. धुलाई प्रक्रिया पूरी तरह से ऑटोमैटिक है और बिना किसी मैनपावर के व्यावहारिक रूप से काम कर सकता है. यह ट्रेन के डिब्बों के बाहरी हिस्से को धोने के लिए कम पानी का इस्तेमाल करता है.

बाहरी रंग को कोई नुकसान नहीं

इसमें ट्रेनों की धुलाई के दौरान हर ट्रेन के लिए महज 20% ताजे पानी का उपयोग होता है जबकि शेष 80% पानी का उपयोग किया जाएगा. सफाई के दौरान डिटर्जेंट के नियंत्रित उपयोग के जरिए लगातार सफाई कराई जाती है, इससे बाहरी रंग को कोई नुकसान नहीं होता. पेंट पर भी कोई असर नहीं पड़ता है. इन प्लांट के जरिए ट्रेनों की सफाई का काम तेजी से हो सकेगा और लागत भी ज्यादा नहीं आएगी.

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