डीडवाना – कुचामन: कुख्यात और विवादास्पद गैंगस्टर रहे आनंदपाल सिंह की मौत के बाद उनके परिवार का सामाजिक संघर्ष थमा नहीं है, अब एक बार फिर यह नाम सुर्खियों में है – लेकिन इस बार वजह है आनंदपाल के छोटे भाई रूपेंद्रपाल सिंह की जेल से रिहाई और उनके सामाजिक संघर्ष की नयी शुरुआत.
हाल ही में जेल से रिहा होकर अपने घर लौटे रूपेंद्रपाल सिंह का लाडनूं की दयानंद कॉलोनी में जबरदस्त स्वागत हुआ। जैसे ही वे अपने निवास पहुंचे, वहां हजारों समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी, जिनमें से कई सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ आए थे। माहौल पूरी तरह उत्सव जैसा था – ढोल-नगाड़ों की थाप, नारों की गूंज और आंखों में एक नई उम्मीद की चमक.
न्याय की अलख, समाज की लड़ाई
अपने निवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूपेंद्रपाल ने कहा कि अब वे अपने जीवन को समाज के अंतिम छोर के लोगों की सेवा में लगाएंगे। उन्होंने कहा, “लंबे समय तक जेल में रहना एक पीड़ादायक अनुभव रहा। जब न्याय में देरी होती है, तो उसका महत्व कम हो जाता है। अब मैं अपने भाई आनंदपाल की नीतियों के अनुसार समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करूंगा.”
उन्होंने न्यायपालिका का सम्मान करते हुए कहा कि न्याय व्यवस्था को तेज और निष्पक्ष बनाना आज की ज़रूरत है। उनका कहना था कि उन्होंने जेल में बहुत कुछ सीखा और अब वो अपने अनुभव को समाज के हित में लगाएंगे.
आनंदपाल की विरासत, परिवार की मिशनरी सोच
रूपेंद्रपाल ने कहा कि आनंदपाल ने जो बीज समाज सेवा का बोया था, उसे पहले माता निर्मल कंवर और फिर बेटी योगिता सिंह ने सींचा, “अब हमारे साथ पूरा कारवां जुड़ चुका है। आनंद भाई साहब की अंतिम इच्छा यही थी – कि हम समाज के कमजोर तबकों के लिए आवाज उठाएं.”
उन्होंने आरोप लगाया कि आनंदपाल की हत्या एक साजिश का हिस्सा थी.
“सरेंडर के बाद उसे मार दिया गया। उसके साथ सेल्फियां ली गईं, फिर बेरहमी से पीटा गया और आखिर में गोलियों से भून दिया गया.”
यह कहते हुए उनकी आंखों में दर्द और क्रोध साफ दिखा.
अब क्या होगा आगे?
रूपेंद्रपाल ने संकेत दिए हैं कि वे जल्द ही कोई संगठनात्मक पहल करेंगे जिससे समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को न्याय दिलाने की एक ठोस और संगठित कोशिश हो सके। उनके मुताबिक, यह सिर्फ एक व्यक्तिगत संकल्प नहीं बल्कि जनांदोलन बन चुका है.
अब देखना दिलचस्प होगा कि, आनंदपाल सिंह की इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए रूपेंद्रपाल सिंह क्या नई दिशा देते हैं और क्या वे वाकई ‘समाज के अंतिम व्यक्ति’ के लिए न्याय की एक नई लड़ाई का चेहरा बन पाते हैं या नहीं.