राजस्थान : डीडवाना में कोर्ट की सख़्ती,आदेशों की अनदेखी पर उपखंड अधिकारी की गाड़ी कुर्क, कलेक्टर और तहसीलदार की गाड़ियां भी होंगी कुर्क

डीडवाना – कुचामन: डीडवाना में वक्फ से जुड़े एक मामले में अदालत के आदेशों की बार-बार अवहेलना करने पर आज बड़ी कार्रवाई हुई. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार गजरा के आदेश पर उपखंड अधिकारी डीडवाना की सरकारी गाड़ी को नाजिर ने पुलिस की मौजूदगी में कुर्क कर लिया और कोर्ट परिसर में खड़ा करवा दिया. यह कुर्की आदेश 21 नियम 32 सीपीसी के तहत की गई.

आठ साल से आदेशों की पालना नहीं

दरअसल, वर्ष 2015 में राजस्थान वक्फ न्यायाधिकरण जयपुर ने सिविल वाद संख्या 43/2003 में फैसला सुनाते हुए डीडवाना स्थित कब्रिस्तान भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया था और जिला कलेक्टर, एसडीएम व तहसीलदार को आदेश दिया था कि इस भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करें. साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया था कि इस भूमि में कोई तब्दीली या अंतरण नहीं होगा.

लेकिन इस आदेश की पालना पिछले आठ साल से नहीं हो रही थी। वर्ष 2016 में इजराय याचिका दायर होने के बाद भी अदालत के आदेशों की लगातार अनदेखी होती रही. कोर्ट की ओर से कई बार नोटिस और हुकमनामा जारी किए गए—यहां तक कि 4 जून 2025 और 7 जुलाई 2025 को भी कलेक्टर और अन्य अधिकारियों को आदेश भेजे गए, लेकिन डीडवाना-कुचामन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

कोर्ट ने मानी न्यायालय की अवमानना

अदालत ने पाया कि प्रशासनिक अधिकारी जानबूझकर आदेश की पालना नहीं कर रहे हैं और केवल खानापूर्ति कर मामले को लंबा खींच रहे हैं। इसे न्यायालय ने अपनी अवमानना माना। अदालत ने तीनों अधिकारियों—जिला कलेक्टर, उपखंड अधिकारी और तहसीलदार—को लापरवाह अधिकारी बताते हुए उनकी गाड़ियां कुर्क करने का आदेश दिया.

कलेक्टर और तहसीलदार की गाड़ियां भी होंगी कुर्क

शनिवार सुबह 10 बजे उपखंड अधिकारी की गाड़ी को जब्त कर कोर्ट परिसर में खड़ा करवा दिया गया. अब इसी आदेश के तहत जिला कलेक्टर और तहसीलदार की गाड़ियों को भी कुर्क करने की कार्रवाई शुरू हो गई है.

अदालत की सख़्त टिप्पणी

अपर जिला न्यायाधीश राजेश कुमार गजरा ने अपने आदेश में कहा कि न्यायालय के आदेशों की लगातार अवहेलना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है. अधिकारियों को आदेश न मानने की खुली छूट नहीं दी जा सकती. सर्वोच्च न्यायालय ने भी इजराय प्रकरणों को छह माह में निस्तारित करने का निर्देश दिया है, लेकिन इस मामले को जानबूझकर आठ साल से लटकाया गया। अदालत ने प्रशासन को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसे मामलों में न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के लिए सख्ती आवश्यक है.

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