राजस्थान : बेटी की चीख भी बेअसर रही, सिस्टम बना गूंगा-बहरा, न्याय न मिलने से नाबालिग ने लगाई फांसी

डीडवाना – कुचामन: जिले के दौलतपुरा गांव से इंसाफ की गुहार लगाती एक दलित नाबालिग की दर्दनाक दास्तां ने पुलिस सिस्टम की संवेदनहीनता को बेनकाब कर दिया है. चार दिनों तक थाने और एसपी ऑफिस के चक्कर काटने के बाद जब भी कहीं सुनवाई नहीं हुई, तो नाबालिग पीड़िता ने फांसी लगाकर आत्महत्या का प्रयास किया.

बीती 29 जुलाई की रात को दलित महिला गीता देवी के घर कुछ दबंगों ने घुसकर परिवार के लोगों से मारपीट की और महिलाओं से छेड़छाड़ की. पीड़ित परिवार ने रिपोर्ट तो दर्ज करवाई, लेकिन आरोप है कि कार्रवाई के नाम पर पुलिस ने चार दिन से केवल खानापूर्ति की, जिससे आरोपियों के हौसले और बुलंद हो गए. पीड़िता की मां गीता देवी लगातार थाने से लेकर एसपी कार्यालय तक इंसाफ की भीख मांगती रही, मगर हर दफ्तर में उसे सिर्फ इंतजार और आश्वासन मिला.

इसी सिस्टम की बेरुखी और समाज की चुप्पी से आहत होकर दलित परिवार की एक नाबालिग लड़की ने सोमवार सुबह फांसी लगाकर जान देने की कोशिश की. गनीमत रही कि समय रहते परिजनों ने उसे फंदे से उतार लिया और तत्काल नागौर के बांगड़ जिला अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां से उसकी हालत नाजुक देखकर उसे सीकर रेफर कर दिया गया.

परिवार का आरोप है कि पुलिस आरोपियों को बचा रही है और उल्टा पीड़ित पक्ष पर ही समझौते का दबाव बना रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब दलित बेटियां खुदकुशी की कगार पर पहुंच रही हैं, तब भी क्या हमारी व्यवस्था जागेगी या सिर्फ बयान जारी करने में ही सिस्टम अपनी संवेदनशीलता निभाएगा?

हालांकि, इस पूरे प्रकरण में पुलिस उप अधीक्षक धरम पूनिया का कहना है कि दो आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया है और छेड़छाड़ का एक नया मुकदमा भी दर्ज हुआ है. जांच जारी है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.

लेकिन सवाल यही है कि अगर सिस्टम समय रहते जाग जाता, तो क्या एक बेटी को फांसी का फंदा थामना पड़ता?

 

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