राजस्थान : 20 दिन पहले लावारिस मिला था नवजात, अब मां ने थाने पहुंचकर जताया हक…मगर कानूनी प्रक्रिया बनी दीवार

डीडवाना- कुचामन: जिले के मकराना उपखंड क्षेत्र के बोरावड़ कस्बे की झाड़ियों में 20 दिन पहले मिला एक नवजात शिशु का माला, अब चर्चा का बड़ा विषय बन गया है. उस समय बच्चे को लावारिस समझकर पुलिस ने अस्पताल पहुंचाया और बाद में उसे बाल कल्याण समिति नागौर को सुपुर्द कर दिया था.

लेकिन अब इस कहानी में नया मोड़ आया है—नवजात की मां खुद पुलिस थाने पहुंच गई है और रोते हुए उसने अपने बच्चे को वापस लौटाने की गुहार लगाई है.

मां की ममता पर भारी कानूनी प्रक्रिया

महिला का दावा है कि यह वही बच्चा है जिसे उसने जन्म दिया था. लेकिन बच्चे को तुरंत उसे नहीं सौंपा जा सकता. पुलिस और बाल कल्याण समिति ने साफ किया है कि डीएनए जांच और अन्य कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही बच्चा मां को सौंपा जाएगा. यानी मां-बेटे के मिलन के बीच अब कानून की कड़ी दीवार खड़ी है.

दुराचार का शिकार हुई महिला, छीन लिया गया बच्चा

महिला घुमंतू परिवार से है और विधवा है. वह अपने चार बच्चों और सास के साथ टेंट में रहती है. महिला ने पुलिस को बताया कि पप्पूराम बागरिया नामक युवक ने उससे शादी का झांसा देकर दुराचार किया. इस संबंध से वह गर्भवती हो गई. 26 जुलाई को प्रसव पीड़ा होने पर पप्पूराम उसे एक दाई के पास ले गया, जहां बच्चे का जन्म हुआ. लेकिन घर लौटते समय पप्पूराम ने महिला को बंधक बना लिया और नवजात को उससे छीनकर भाग गया. अगले दिन महिला किसी तरह छूटकर अपनी सास के पास पहुंची और पूरी आपबीती सुनाई.

मामले में जांच अधिकारी मंगाराम ने बताया की “20 दिन पहले नवजात शिशु लावारिस अवस्था में मिला था. अब महिला सामने आई है और उसने खुद को बच्चे की मां बताया है. फिलहाल कानूनी प्रक्रिया के तहत डीएनए टेस्ट करवाया जाएगा और जांच के बाद ही बच्चे को मां को सुपुर्द करने की कार्रवाई की जाएगी.”

बाल कल्याण समिति का रुख

बाल कल्याण समिति नागौर के अध्यक्ष मनोज सोनी ने कहा कि नवजात की सुरक्षा सर्वोपरि है.

यदि महिला का दावा सही साबित होता है, तो बच्चे को कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद मां को सौंप दिया जाएगा. इसके लिए डीएनए टेस्ट और परिवार की जांच की जाएगी.

राजनीतिक स्तर पर उठी आवाज़

पूर्व विधायक भंवरलाल राजपुरोहित ने महिला की दयनीय स्थिति पर चिंता जताई है.

उन्होंने कहा कि महिला के पास रहने के लिए छत तक नहीं है और वह टेंट में अपने बच्चों के साथ गुजर-बसर कर रही है. ऐसे में सरकार को न सिर्फ महिला का पुनर्वास करना चाहिए बल्कि आरोपी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.

एक मां की ममता बनाम कानून की कसौटी

यह मामला इंसानी रिश्तों और कानून के बीच संघर्ष का उदाहरण बन गया है. एक ओर मां अपने लाडले को गोद में भरने के लिए तड़प रही है, वहीं दूसरी ओर कानून बच्चे की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए अपने ढंग से आगे बढ़ रहा है.अब सभी की निगाहें डीएनए जांच और पुलिस की कार्रवाई पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि क्या यह महिला सचमुच उसी नवजात की जन्मदायिनी है.

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