डीडवाना – कुचामन बंदों पर रहमत की बारिश करने वाला माहे रमजान का पहला अशरा मंगलवार को खत्म हो गया. बुधवार को ग्यारहवें रोजे से दूसरा अशरा शुरू हो गया, जिसे मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का अशरा कहा जाता है. इसमें अल्लाह अपने बंदों को खास इनआमात से नवाजता है.
कुचामन सिटी की मिर्जा मस्जिद के पेश इमाम अब्दुल वाहिद नईमी ने बताया कि माहे रमजान में अल्लाह ताला अपने बंदों को रहमतों से जहां मालामाल करता है वहीं उसे गुनाहों से नजात व जहन्नम से आजादी देता है. इसके लिए रमजान को तीन अलग-अलग अशरों (भाग) में बांटा गया है.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
पहला अशरा रहमत का है जो रमजान के चांद से शुरू होकर दसवें रोजे तक जारी रहता है. मस्जिद ए मेहराब के इमाम शहाबुद्दीन और कलालों की मस्जिद के इमाम मौलाना आशिक अली ने बताया की दूसरा अशरा मगफिरत (क्षमा) का है. इस अशरे में इन्सान को अपने रब से गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ करनी चाहिए.
मस्जिद छिपान के इमाम साबिर हुसैन फ़ैज़ानी ने बताया की आखिरी अशरा जहन्नम से नजात दिलाने वाला होता है. जो बेहद अहम माना जाता है. उन्होंने बताया कि आखिरी अशरे तक रोजा व इबादत का सिलसिला कायम रखना बड़ी बात होती है. यही वजह है कि आखिरी अशरे में इबादत करने वालों को अल्लाह ताला इनाम के तौर जहन्नम से नजात यानी मुक्ति दे देता है.