कन्नूर: केरल के कुन्हिमंगलम गांव में अयोध्या के राम मंदिर को रोशनी से जगमग करने के लिए एक दुर्लभ कांस्य का दीपक तैयार किया गया है. केरल के कन्नूर जिला में स्थित कुन्हीमंगलम हेरिटेज विलेज को कांस्य गांव के रूप में भी जाना जाता है. इस गांव में आकर्षक मूर्तियों का खजाना है. यहां के कारगीरों को कांस्य की मूर्तियां बनाने में महारत हासिल है. कुंजिमंगलम के हस्तनिर्मित कांस्य लैंप (दीपक) और मूर्तियां विश्व में प्रसिद्ध हैं. अब कुंजिमंगलम हेरिटेज विलेज एक बार फिर से सुर्खियों में है. वह इसलिए क्योंकि इस गांव से फिर से 15 इंच ऊंचाई और 15 इंच चौड़ाई वाला एक दुर्लभ कांस्य का दीपक अयोध्या के राम मंदिर में भेजा जा रहा है.
इस दीपक की खास बात यह है कि, इसमें रामलला की 11 सेमी की कांस्य की बनी बाल मूर्ति है. पूरे दीपक का वजन 12 किलोग्राम है. कुन्हीमंगलम कांस्य गांव के कांस्य मूर्तिकार पी वलसन ने 3 महीने के भीतर इस दुर्लभ दीपक को तैयार किया है. बता दें कि, कांस्य मूर्तिकार पदिनजट्टयिल सुरेशन और परियाक्करन रवि भी इस दीपक को पूरा करने में वाल्सन का साथ दिया था. अब यह आकर्षक और दुर्लभ दीपक लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.
खबर के मुताबिक, रामलला के लिए दीपक बनाने की पेशकश कोझिकोड के एक मूल निवासी ने की थी. अब यह दीपक जून के अंत तक अयोध्या पहुंच जाएगा. बता दें कि, कुन्हिमंगलम हेरिटेज विलेज भारत के केरल राज्य के कन्नूर जिले में स्थित एक बहुत ही खूबसूरत गांव है. यह विलेज अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक वास्तुकला और जीवंत सामुदायिक जीवन के लिए जाना जाता है.
वहीं, जीआई स्टेटस मिलने के बाद, केरल के मुसहरी कोव्वल और कुन्हीमंगलम दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. यहां मूर्तियों को बनाने के लिए कुन्हीमंगलम के खेतों से मिट्टी, जूट और रेत का उपयोग किया जाता है. मूर्तियां बनाने वाले कारीगर पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर एक से एक आकर्षक मूर्तियों को तैयार करते हैं. मूर्तियों को बनाने के लिए कांसे को पिघलाया जाता है. उसके बाद पिघले हुए पदार्थ को सांचे में डाल दिया जाता है. कारीगरों के मुताबिक, पिघले हुए पदार्थ को सांचे में डालने में लगभग तीन से पांच घंटे का वक्त लगता है.
एक मूर्ति को तैयार करने में काफी सावधानी बरती जाती है. हालांकि, मूर्ति बनाने के काम में शारीरिक मेहनत ज्यादा होती है और मुनाफा भी कम होता है. इसलिए कई कारीगरों ने मूर्ति बनाने का काम छोड़ दिया है. इसके बावजूद भी गांव में करीब तीस परिवार ऐसे हैं जो इस पेशे को अब तक नहीं छोड़ा है.