22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को रोकने का ऐलान किया था. इससे पाकिस्तान घुटनों पर आ गया है. इस फैसले को लेकर पाकिस्तान ने भारत से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई है. पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को पत्र लिखकर अपील की है कि भारत का यह कदम पाकिस्तान में गंभीर जलसंकट पैदा कर सकता है. पत्र में भारत से अपील की गई है कि वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करे.
सूत्रों के मुताबिक नियमानुसार यह पत्र भारत के विदेश मंत्रालय को भी भेज दिया गया है, लेकिन भारत ने पाकिस्तान की इस अपील को साफ तौर पर नकार दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में दो टूक कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
क्या है सिंधु जल समझौता?
सिंधु जल समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था. सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से 19.5 फीसदी पानी मिलता है. जबकि पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है. भारत अपने हिस्से में से भी करीब 90 फीसदी पानी ही उपयोग करता है.
साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की बैठक अनिवार्य है. समझौते के तहत पू्र्वी नदियों पर भारत का अधिकार है. जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया. इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. भारत को 3 पूर्वी नदियां सतलज, ब्यास और रावी आवंटित हुईं, जबकि पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान के हिस्से में गईं.