सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना का केस बंद कर दिया है. उनके खिलाफ सभी कार्यवाही को भी बंद किया गया है. बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण की ओर से कोर्ट को आश्वासन दिया गया था कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा. उनके आश्वासन को अदालत ने स्वीकार किया.
7 मई, 2024 को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लगातार भ्रामक विज्ञापनों की उपलब्धता के लिए पतंजलि आयुर्वेद की खिंचाई की थी. ये विज्ञापन 14 उत्पादों से संबंधित हैं, जिनके लाइसेंस उत्तराखंड सरकार ने औषधि एवं अन्य जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के प्रावधानों का उल्लंघन करने के कारण निलंबित कर दिए गए थे.
कब शुरू हुआ था मामला?
यह मामला 2022 में तब शुरू हुआ था, जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और उसके तत्कालीन उपाध्यक्ष जयेश लेले ने पतंजलि के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें एलोपैथी को बदनाम करने वाले विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे. विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान झूठा दावा किया गया था कि इसके अपने आयुर्वेदिक उत्पाद कुछ बीमारियों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं.
21 नवंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की एक अलग बेंच ने पतंजलि के उन विज्ञापनों को बंद करने के आश्वासन को दर्ज किया , जिन्हें भ्रामक माना गया था. एक दिन बाद पतंजलि के सह-संस्थापक बाबा रामदेव ने डेढ़ घंटे लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने दोहराया कि उन्होंने अपने उत्पादों के बारे में कोई भ्रामक बयान नहीं दिया है. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने शोध-समर्थित और वास्तविक दुनिया के साक्ष्य-आधारित उपचार के माध्यम से टाइप 1 मधुमेह, अस्थमा, थायराइड और रक्तचाप की समस्याओं को ठीक किया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का मामला शुरू किया था.