भारत के एजुकेशन सिस्टम का रिपोर्ट कार्ड जारी, 70% लोगों ने जताया भरोसा, लेकिन बड़ी चुनौतियां बरकरार..

भारत के शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे लगातार प्रयासों के चलते एजुकेशन सिस्टम पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट में सामने आया है कि शिक्षा और सोशल-इकोनॉमिक मोबेलिटी के ममाले में भारत दुनिया के सबसे अशाावादी देशों में से एक बनकर उभरा है. 70 फीसदी लोगों ने भारत के एजुकेशन सिस्टम और सोशल-इकोनॉमिक मोबेलिटी पर भरोसा जताया है, जबकि वैश्विक स्तर पर केवल 30 फीसदी लोगों ने अपने देश की एजुकेशन प्रणाली को लेकर आशावादी थे.

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एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ETS) ह्यूमन प्रोग्रेस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने एजुकेशनल सिस्टम को लेकर काफी आशावादी है, जबकि दुनिया के अन्य देशों के लोगों को अपने देश की शिक्षा प्रणाली में निराशा हाथ लगी है. यह रिपोर्ट 18 देशों में 1,80,000 लोगों पर की गई स्टडी पर आधारित है.

भविष्य में और सुधार का भरोसा

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में केवल 30% लोगों ने अपने देश की वर्तमान एजुकेशनल सिस्टम को लेकर बेहतरी की उम्मीद जताई है. जबकि, इस स्टडी में शामिल 70% भारतीयों ने अपने देश के एजुकेशन सिस्टम को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में 76 फीसदी लोगों ने अपने देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में 2035 तक और सुधार पर भरोसा जताया है, जबकि वैश्विक स्तर पर 64 फीसदी लोगों ने अपने देश के शिक्षा प्रणाली पर भरोसा जताया.

भारत के एजुकेशन सिस्टम में ये चुनौतियां 

इस रिपोर्ट में भारत के एजुकेशन सिस्टम में मौजूदा चुनौतियों पर भी फोकस किया गया है. इसमें कहा गया है कि भारत में लोगों की शिक्षा तक पहुंच और टीचर्स की कमी मुख्य चुनौती बनी हुई है. स्टडी में शामिल कई लोगों ने भारत के एजुकेशन सिस्टम में फैली चुनौतियों को भी स्वीकार किया है. 84 फीसदी लोगों ने माना है कि क्वालिटी एजुकेशन तक पहुंच अभी भी मुश्किल है. वहीं 78 फीसदी लोगों ने कहा है कि शिक्षा के अवसर कुछ विशेषाधिकार प्राप्त समूहों तक ही सीमित हैं। इसके अलावा 74 फीसदी ने शिक्षकों की कमी की ओर इशारा किया है.

रोजगार के अवसर

भले ही भारतीयों का एजुकेशन सिस्टम और सोशल-इलोनॉमिक मोबेलिटी पर भरोसा बढ़ा हो, लेकिन आर्थिक बाधाएं और रोजगार के अवसरों की कमी एक समस्या बना हुआ है. स्टडी में 40 फीसदी भारतीयों नें रोजगार की कमी को एक प्रमुख समस्या बताया, जबकि वैश्विक औसत 34 फीसदी था. वहीं भारत में 33 प्रतिशत लोग महंगी शिक्षा को बड़ा मुद्दा मानते हैं, दुनिया में यह आंकड़ा 28 फीसदी ही है.

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