पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ होने वाला भेदभाव बढ़ता जा रहा है. अब इस समुदाय को पंजाब में जमीन खरीदने से रोका जा रहा है. पंजाब हाउसिंग एंड टाउन प्लानिंग एजेंसी (PHATA) ने 17 अप्रैल, 2025 को एक अखबार में आवासीय और कमर्शियल जमीनों की नीलामी का एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें अहमदिया समुदाय के लोगों को साफ तौर पर नीलामी से बाहर रखा गया था. यहां तक कि उन्हें जमात-ए-अहमदिया के मुख्यालय चेनाबनगर के अलावा पड़ोसी शहरों चिनिओत, झंग और शोरकोट में भी होने वाली नीलामी से बाहर रखा गया.
विज्ञापन को झंग PHATA सब रिजन के उप निदेशक तारिक महमूद ने जारी किया जिसमें कहा गया था कि केवल ‘मुस्लिम’ ही 17 आवासीय और व्यावसायिक भूखंडों के लिए बोली लगाने के पात्र हैं. यह नीलामी सैटेलाइट टाउन झंग, एरा डेवलपमेंट स्कीम चिनिओट, एरा डेवलपमेंट स्कीम चेनाबनगर, एरा डेवलपमेंट स्कीम शोरकोट में कमर्शियल और आवासीय जमीनों के लिए हो रही है.
विज्ञापन में साफ कहा गया है कि अहमदिया/मिर्जई/लाहोरी/कद्दियानी समुदाय से संबंधित किसी भी व्यक्ति को नीलामी में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं है. इसमें कहा गया है कि समुदाय के लोगों को नीलामी में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है और अगर कोई व्यक्ति फिर भी जानबूझकर नीलामी में हिस्सा लेता है और पकड़ा जाता है तो उसका पैसा, जमीन वापस नहीं किया जाएगा.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने की निंदा
अहमदिया मुसलमानों को नीलामी से दूर रखे जाने की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कानूनी विशेषज्ञों और अल्पसंख्यक अधिकार समूहों ने निंदा की है. उनका तर्क है कि यह पाकिस्तान की समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करता है और एक सरकारी निकाय की ओर से यह कदम और भी अधिक निंदनीय है. उनका कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकता है.
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि PHATA ने जो विज्ञापन जारी किया है वो असंवैधानिक है. मानवाधिकार वकील एहसान उल्लाह जट्ट कहते हैं, ‘यह मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है. अगर कोई सरकारी एजेंसी खुलेआम नागरिकों के साथ आस्था के आधार पर भेदभाव करती है, तो कानून के सामने समानता की क्या उम्मीद है?’
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय दशकों से उत्पीड़न का सामना कर रहा है, जिसमें उनके मस्जिदों में जाने, नमाज पढ़ने पर पाबंदी है. उन पर आए दिन हमले होते रहते हैं. हालांकि, पंजाब सरकार की एजेंसी ने जो ताजा कदम उठाया है, वो बेहद खतरनाक माना जा रहा है क्योंकि यह सरकारी निकाय है.
अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता आमिर महमूद ने इस नीति की निंदा करते हुए कहा, ‘यह सिर्फ हमारे खिलाफ साजिश के बारे में नहीं है बल्कि इससे पता चलता है कि कैसे सरकार अहमदियों के खिलाफ भेदभाव कर रही है. अगर हमें बुनियादी आर्थिक अवसरों से वंचित रखा जाता है, तो हम समान नागरिक होने का दावा कैसे कर सकते हैं?’
पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने भेदभावपूर्ण शर्त को तत्काल हटाने की मांग की है. HRCP के अध्यक्ष असद इकबाल बट कहते हैं, ‘ऐसी नीतियां धार्मिक भेदभाव को बढ़ाती हैं और इन्हें खत्म किया जाना चाहिए.’
अहमदिया को गैर-मुस्लिम मानता है पाकिस्तान
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के साथ अत्याचार की खबरें आती रही हैं. वहां के इस्लामिक कट्टरपंथी समूह इस समुदाय के खिलाफ घृणा बढ़ाने का काम करते हैं जिससे वर्कप्लेस पर इनका उत्पीड़न बढ़ा है, इन्हें नौकरियां नहीं मिलती, अहमदिया दुकानदारों का सार्वजनिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है.
1974 में पाकिस्तान की संसद ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था. इसके एक दशक बाद, जिया-उल-हक के शासन के दौरान उन्हें खुद को मुसलमान कहने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. उन्हें हज के लिए सऊदी अरब के मक्का जाने से भी रोक दिया गया है. अहमदियों को अपने धर्म के प्रचार की भी मनाही है. अगर वो ऐसा करते हैं तो उन्हें 3 साल तक की जेल हो सकती है.
पाकिस्तान की लगभग 24 करोड़ आबादी में लगभग 1 करोड़ गैर मुस्लिम हैं. पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो की तरफ से 2021 में जारी आंकड़ों के अनुसार, यहां 96.47 प्रतिशत मुसलमान हैं, इसके बाद 2.14 प्रतिशत हिंदू, 1.27 प्रतिशत ईसाई, 0.09 प्रतिशत अहमदिया मुसलमान और 0.02 प्रतिशत अन्य अल्पसंख्यक हैं.