मार्च में खुदरा महंगाई दर 10 महीने में सबसे कम रही. खाने-पीने की चीजें सस्ती होने से खुदरा महंगाई दर में ये गिरावट देखी गई है. नेशनल स्टैटिकल ऑफिस (NSO) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश की खुदरा महंगाई दर मार्च में घटकर 4.85% रही, इससे पहले जुन में यह दर 4.81% थी.
• खाद्य महंगाई दर 8.66% से घटकर 8.52% पर आ गई.
• ग्रामीण महंगाई दर 5.34% से बढ़कर 5.45% आ गई.
• शहरी महंगाई दर 4.78% से घटकर 4.14% पर आ गई.
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है. उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा. इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए. नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी.
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है. अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे. ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी.
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है. सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है. वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी.
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं. इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है. हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है.
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है. करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है.
वहीं इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन यानी IIP के फरवरी 2024 के आंकड़े भी जारी कर दिए गए हैं. फरवरी में IIP ग्रोथ 5.7% दर्ज की गई है. जनवरी में यह 3.8% रही थी. यानी महीना दर महीना आधार पर IIP बढ़ी 1.9% बढ़ी है.
जैसा कि नाम से ही जाहिर है, उद्योगों के उत्पादन के आंकड़े को औद्योगिक उत्पादन कहते हैं. इसमें तीन बड़े सेक्टर शामिल किए जाते हैं. पहला है- मैन्युफैक्चरिंग, यानी उद्योगों में जो बनता है, जैसे गाड़ी, कपड़ा, स्टील, सीमेंट जैसी चीजें.
दूसरा है- खनन, जिससे मिलता है कोयला और खनिज. तीसरा है- यूटिलिटिज यानी जन सामान्य के लिए इस्तेमाल होने वाली चीजें. जैसे- सड़कें, बांध और पुल. ये सब मिलकर जितना भी प्रॉडक्शन करते हैं, उसे औद्योगिक उत्पादन कहते हैं.
IIP औद्योगिक उत्पादन को नापने की इकाई है- इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन. इसके लिए 2011-12 का आधार वर्ष तय किया गया है. यानी 2011-12 के मुकाबले अभी उद्योगों के उत्पादन में जितनी तेजी या कमी होती है, उसे IIP कहा जाता है.
इस पूरे IIP का 77.63% हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आता है. इसके अलावा बिजली, स्टील, रिफाइनरी, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, प्राकृतिक गैस और फर्टिलाइजर- इन 8 बड़े उद्योगों के उत्पादन का सीधा असर IIP पर दिखता है.