रीवा: टीआरएस कॉलेज हत्याकांड में कोर्ट ने सुनाया फैसला, तीन को मिली उम्रकैद, तीन बरी

रीवा: साल 2018 में रीवा के टीआरएस कॉलेज में नितिन सिंह गहरवार हत्याकांड ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था। इस बहुचर्चित मामले में छह आरोपी बनाए गए थे, जिनमें से तीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि तीन अन्य को बरी कर दिया गया। ज्ञात हो कि साल 2018 में रीवा के टीआरएस कॉलेज परिसर में नितिन सिंह गहरवार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय सिविल लाइंस थाने में टीआई अरुण सोनी थे। इस घटना ने शहर में कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए थे और राजनीतिक गलियारों में भी इसकी काफी चर्चा हुई थी।

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पुलिस ने इस मामले में गहन जांच की और कुल छह आरोपियों को नामजद किया। इस घटना का सीसीटीवी भी सामने आया जो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, नितिन सिंह गहरवार हत्याकांड में एफआईआर क्रमांक 236/18 दर्ज किया गया था। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें मुख्य रूप से धारा 302 (हत्या), 120 बी (आपराधिक साजिश), 109,176 ,212  और 33 शामिल हैं।

घटना के बाद सिविल लाइंस पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। लंबी कानूनी प्रक्रिया, गवाहों के बयान और साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले ने रीवा में खूब सुर्खियां बटोरीं और समाज के विभिन्न वर्गों से न्याय की मांग उठी। सभी पक्षों की दलीलें सुनने और प्रस्तुत साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। इस फैसले में दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

इसमें मयंक संग्राम सिंह, उसे नितिन सिंह की हत्या का दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सत्यम सिंह, उसे भी हत्या का दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। साथ ही तीसरे आरोपी वैभव सिंह को भी इस जघन्य अपराध में शामिल होने का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। वहीं, मामले में तीन अन्य आरोपियों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव या संदेह के लाभ के कारण बरी कर दिया गया। तीन आरोपी मुन्नू, देवेंद्र और दिवाकर थे।

अदालत के इस फैसले को टीआरएस नितिन हत्याकांड में न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया। इस घटना ने एक बार फिर शैक्षणिक परिसरों में बढ़ती आपराधिक गतिविधियों पर चिंता व्यक्त करने का अवसर दिया और प्रशासन को ऐसे मामलों पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर किया। इस ऐतिहासिक फैसले से पीड़ित परिवार को न्याय मिला है।

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