रीवा: हनुमान मंदिर में तोड़फोड़, मूर्ति खंडित, गांव में आक्रोश

रीवा: सनातन संस्कृति और आस्था की तपोभूमि रीवा में एक हृदयविदारक घटना ने जनमानस को मर्माहत कर दिया है। सिरमौर थाना अंतर्गत सदहना गांव के प्राचीन हनुमान मंदिर में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा न केवल तोड़फोड़ की गई, बल्कि हनुमान जी की विग्रह प्रतिमा को भी खंडित कर अपवित्र किया गया.

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यह दृश्य न केवल आंखों को छलनी करने वाला था, बल्कि श्रद्धा के मर्म को भी विदीर्ण कर गया। ग्रामीणों के अनुसार, गांव के ही एक युवक पर यह घृणित कृत्य किए जाने का संदेह जताया गया है। सोमवार की भोर बेला में जब श्रद्धालु पूजन-अर्चन हेतु मंदिर पहुंचे, तो वहां बिखरी मूर्ति के अवशेष और अस्त-व्यस्त परिसर ने उनका हृदय विदीर्ण कर दिया.

यह मंदिर मात्र ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं, अपितु क्षेत्रीय जनजीवन की आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना का सजीव केंद्र था। इसके विघटन से मानो पीढ़ियों से संजोई गई भक्ति की दीर्घ परंपरा पर गहरी चोट पहुंची है, सूचना पाते ही सिरमौर थाना पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रण में लिया। ग्रामीणों की त्वरित शिकायत पर पुलिस ने अज्ञात आरोपी के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर जांच प्रारंभ कर दी है। एसडीओपी उमेश प्रजापति ने स्पष्ट किया कि, “घटना की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए हर कोण से जांच की जा रही है। दोषी पाए जाने पर अपराधियों के खिलाफ कड़ी वैधानिक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी.”

ग्रामवासियों ने एक स्वर में प्रशासन से मांग की कि इस पवित्र स्थल का शीघ्र पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करवाई जाए तथा दोषियों को उदाहरणीय सजा दी जाए, ताकि सनातन संस्कृति पर बार-बार आघात करने का दुस्साहस कोई न कर सके। यह घटना केवल धार्मिक स्थल पर आक्रमण नहीं, अपितु संपूर्ण सामाजिक ताने-बाने पर प्रहार है। रीवा जैसे संस्कृति के केंद्र में ऐसी घटनाएँ न केवल समाज को आहत करती हैं, बल्कि सद्भावना और सहिष्णुता के मूल्यों को भी संकट में डालती हैं.

“श्रद्धा को रौंदने वालों को सहना अधर्म है। आस्था की हर चोट का उत्तर न्याय की कठोरता से देना होगा। धर्म, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा हम सबका साझा दायित्व है। सांस्कृतिक धरोहरों पर उठने वाला प्रत्येक हाथ विधि के दंड से दहलेगा.

“समाज को आत्ममंथन करना होगा।” सवाल केवल एक मूर्ति खंडन का नहीं है, प्रश्न उस मानसिकता का है जो आस्था के प्रतीकों को चोट पहुंचाकर संकीर्ण, विद्वेषपूर्ण वातावरण को जन्म देती है। हमें यह समझना होगा कि मंदिर टूटने से यदि समाज मौन रहा तो कल को संस्कार भी खंडित होंगे। अतः ऐसे अवसरों पर संवैधानिक व्यवस्था के साथ सांस्कृतिक चेतना का जागरण भी अनिवार्य है। वक्त की पुकार है कि हम अपने भीतर संयम, सजगता और सामाजिक एकजुटता का दीपक प्रज्वलित करें, ताकि ऐसी दुर्भावनाएं स्वयं दम तोड़ दें.

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