राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि अहिंसा हमारा धर्म है, लेकिन अत्याचारियों को दंडित करना भी उसी अहिंसा का एक रूप है. दिल्ली में ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ नामक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत अपनी परंपरा के अनुसार कभी भी किसी पड़ोसी देश को हानि नहीं पहुंचाता, लेकिन यदि कोई देश या समूह गलत रास्ता अपनाता है और अत्याचार करता है, तो राजा (सरकार) का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा की रक्षा करे.
भागवत का यह वक्तव्य ऐसे समय आया है जब हाल ही में कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में आतंकवादी हमले की घटनाएं सामने आई हैं. भले ही उन्होंने सीधे किसी देश का नाम नहीं लिया, पर उनके शब्दों को पाकिस्तान पर एक परोक्ष टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है.
‘रावण का वध भी अहिंसा थी’
भागवत ने अपने संबोधन में मुंबई में दिए गए एक हालिया भाषण का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि रावण का वध उसके कल्याण के लिए हुआ था. ये हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा बताया. उनके अनुसार, जब कोई अत्याचार की सारी सीमाएं पार कर लेता है और उसके सुधार का कोई उपाय नहीं बचता, तो उसका दमन करना भी एक प्रकार की अहिंसा ही है, धर्म का पालन.
उन्होंने कहा, “भगवान ने रावण का संहार किया, वह हिंसा नहीं थी. अत्याचारियों को रोकना धर्म है. राजा का कर्तव्य है कि वह जनता की रक्षा करे और दोषियों को दंड दे.”
शास्त्रार्थ की परंपरा और हिंदू धर्म की पुनर्व्याख्या
पुस्तक विमोचन के अवसर पर भागवत ने शास्त्रार्थ की महान परंपरा पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में विचार-विमर्श का एक समृद्ध इतिहास रहा है, जहां प्रस्ताव और उत्तर दोनों पक्षों को सुनकर समाधान निकाला जाता था. ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ पुस्तक में प्रस्तुत सूत्रों को उन्होंने सत्य बताया, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि इस पर गहन चर्चा और संवाद आवश्यक है.
भागवत ने कहा, “शास्त्रार्थ से ही सही मार्ग निकलता है. ऐसे विमर्श से हिंदू धर्म का एक काल-सुसंगत स्वरूप समाज के सामने आएगा.”
जाति-पंथ का भेद नहीं, हिंदू धर्म की गहराई में जाने की जरूरत
अपने भाषण के दौरान भागवत ने जोर दिया कि हिंदू शास्त्रों में जाति-पंथ का कोई भेद नहीं है. उन्होंने कहा कि समय के साथ सामाजिक लाभ के लिए कुछ विकृतियां आईं, जिन्हें अब सुधारने की आवश्यकता है. उन्होंने समाज से अपील की कि वे हिंदू धर्म की मूल भावना को समझें और आत्मसात करें. उन्होंने कहा, “हिंदू समाज को अपने धर्म की गहराई को जानने और उसे समय के अनुरूप ढालने की जरूरत है.”
भारत विश्व को देगा तीसरा रास्ता
भागवत ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की भूमिका पर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि पिछले दो हजार वर्षों में जो भी सामाजिक-राजनीतिक प्रयोग हुए, वे पूर्ण समाधान नहीं दे सके. भौतिक समृद्धि के बावजूद विश्व पीड़ित है, असंतोष से ग्रस्त है.
उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा, “दुनिया ने दो रास्ते देख लिए हैं, अब तीसरा रास्ता भारत देगा.” भागवत ने कहा कि भारत से दुनिया को न केवल एक नया वैचारिक मार्ग मिलेगा, बल्कि एक ऐसा संतुलित और मानवतावादी दृष्टिकोण भी मिलेगा, जिसकी आज वैश्विक स्तर पर आवश्यकता है.