Vayam Bharat

विनेश-बजरंग के कांग्रेसी बनने पर साक्षी मलिक ‘दु:खी’, तीन मायने हो सकते हैं उनके बयान के

28 मई, 2023 जंतर-मंतर में प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों का प्रदर्शन चल रहा था. नए संसद भवन का उद्घाटन होना था और पहलवान संसद भवन तक मार्च करना चाह रहे थे. प्रदर्शन-स्थल तक जाने वाली सड़क की सुबह से नाकाबंदी कर दी गई थी. पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के कर्मियों ने प्रदर्शनकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी थी. उसी वक़्त अचानक साक्षी मालिक शेरनी की तरह भीड़ को चीरती हुई निकलीं और तेज़ी से आगे बढ़ने लगीं. साक्षी के आस-पास प्रदर्शनकारियों की भीड़ भी बढ़ने लगी लेकिन पुलिसकर्मी उन्हें धर दबोचने में कामयाब होती है. साक्षी मलिक को पुलिस ने वैसे ही घेरा हुआ था जैसे सनी देओल की फिल्मों में उन्हें दर्जनों गुंडे मिलकर पकड़ने की कोशिश करते हैं. दरअसल महिला पहलवानों की मंडली में विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया के मुकाबले सबसे अधिक लोकप्रिय और मुखर साक्षी मलिक ही थीं. देश की पहली महिला पहलवान जिसने ओलंपिक में पदक जीतकर इतिहास रच दिया था.

Advertisement

इस कहानी को सुनाने का मतलब सिर्फ इतना है कि महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ जिस आवाज ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, आज वह आवाज अपने साथियों के राजनीति का दामन थामने के चलते दुखी है. मलिक को लगता है कि विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने शुक्रवार को कांग्रेस जॉइन कर महिला पहलवानों की आवाज को कमजोर कर दिया है. इस लड़ाई की सबसे प्रमुख किरदार साक्षी मलिक कहती हैं कि ‘वो रिजाइन कर रहे हैं और पार्टी जॉइन करेंगे. ये उनका व्यक्तिगत फैसला है. मेरा मानना है कि हमें त्याग कर देना चाहिए. हमारे आंदोलन को गलत रूप नहीं दिया जाए. मैं तो महिलाओं के लिए खड़ी रहूंगी, मेरे पास भी ऑफर था लेकिन मैं रेसलिंग और महिलाओं के साथ खड़ी हूं.’ उनकी आवाज में दुख है, लड़ाई में अकेले पड़ने की पीड़ा है, साथियों को न रोक पाने की बेबसी है. सवाल यह है कि साक्षी मलिक ऐसा कहने पर क्यों मजबूर हुईं ? क्या महिला पहलवानों की लड़ाई के अपने साथियों से वो नाराज हैं? और सबसे बड़ी बात कि साक्षी मलिक के बयानों के मायने क्या हो सकते हैं?

1- क्या पहलवानों में दरार पड़ गई?

साक्षी मलिक अपने साथियों बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट के हर कदम में साथ रहीं. चाहे वो धरना प्रदर्शन हो या कंप्लेन दर्ज कराने की बात हो, चाहे प्रेस कॉन्फ्रेंस रहा हो या मोदी सरकार की आलोचना की बात रही हो साक्षी कभी अपने साथियों से पीछे नहीं रहीं. बल्कि इस आंदोलन की उन्हें अगुवा कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगा. पर जिस तरह वो शुक्रवार को एक पत्रकार को इंटरव्यू दे रही हैं उससे लगता है कि उनका अपने साथियों के साथ मनमुटाव हो चुका है. उनकी आवाज में दर्द साफ दिखता है. वो बार-बार कहती हैं कि हमें त्याग कर देना चाहिए. मतलब साफ है कि बिना त्याग और समर्पण के महिला पहलवानों के आंदोलन को मंजिल नहीं मिल सकेगी. वो कहती हैं कि ‘संघर्ष को अंत तक ले जाऊंगी, मैंने हमेशा कुश्ती के बारे में सोचा है, मैंने कुश्ती के हित में काम किया है और आगे भी करूंगी. मुझे बड़े ऑफर भी मिले लेकिन मैं जिस चीज से भी जुड़ी हूं, उसके अंत तक काम करना है. जब तक फेडरेशन साफ-सुथरा नहीं हो जाता और बहन-बेटियों का शोषण बंद नहीं हो जाता, मेरी लड़ाई जारी रहेगी. उनकी हर बात का सीधा मतलब यही निकलता है कि उनके साथियों ने कांग्रेस जॉइन करेक गलती की है. मुझे भी ऑफर मिले पर मैं नहीं गई इसका सीधा अर्थ है कि उन्हें ( विनेश और बजरंग ) भी नहीं जाना चाहिए था.

2- क्या पहलवानों के उत्‍पीड़न का मुद्दा जीवित रखने की सोची समझी रणनीति है?

एक संभावना यह भी बनती है कि पहलवान मंडली की यह सोची समझी रणनीति हो. एक शख्स ऐसा हो जिसे राजनीति में रुचि न हो वह लड़ाई को जारी रखे. बिना किसी राजनीतिक झुकाव के. क्योंकि महिला पहलवानों को जो शुरू से ही सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में समर्थन मिला वो इसी के चलते था कि वो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं थे. यहां तक कि अपने मंच पर भी किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं के आने से पहलवानों ने मना कर दिया था.विनेश और बजरंग के कांग्रेस जॉइन करने के बाद उनका आंदोलन पर कांग्रेस पार्टी का ठप्पा न लग जाए इसलिए यह सोची समझी रणनीति भी हो सकती है.

2- क्या साक्षी मलिक भी भविष्य में पॉलिटिक्‍स ज्‍वाइन करेंगी?

साक्षी मलिक रिपोर्टर के ये पूछने पर क्या वो विनेश और बजरंग का चुनाव प्रचार करने जाएंगी? मलिक इसके जवाब में एक बात कई बार दोहराती हैं कि वो किसी भी पार्टी से न जुड़ी हैं और न उनका कोई राजनीतिक झुकाव है. वो साफ कहती हैं कि मेरी किसी भी पार्टी से दुश्मनी नहीं है. मेरी लड़ाई केवल और केवल कुश्ती फेडरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह से थी और जब तक खिलाड़ियों को न्याय नहीं दिलवा लेती तब तक रहेगा.उनकी इस बात के दो मतलब निकलते हैं. पहली बात वो विनेश या बजरंग या कांग्रेस के लिए भी वो प्रचार में नहीं जाने वाली हैं. दूसरी बात बीजेपी से उनकी दुश्मनी नहीं है. वैसे, दुश्‍मनी तो कांग्रेस से भी नहीं है. ऐसे में आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए कि यदि वे भी आगे चलकर राजनीति के अखाड़े में उतर जाएं.

साक्षी मलिक भी जाट फैमिली से आती हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि साक्षी के लिए भी राजनीतिक ऑफर आए ही होंगे. आखिर देश की पहली और अकेली महिला पहलवान हैं जिन्होंने ओलिंपिक मेडल जीता है.

Advertisements