इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दाखिल एलोपैथ को निशाना बनाने वाली याचिका और भ्रामक विज्ञापन के मामले में रामदेव और पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है. अदालत के फैसले पर रामदेव ने कहा कि हमने योग और आयुर्वेद की डोर बहुत ऊंची उड़ा रखी थी. कुछ लोग उसे काटना चाहते थे. सुप्रीम कोर्ट ने वह केस ही काट दिया.
‘सुप्रीम कोर्ट ने केस ही काट दिया’
रामदेव ने कहा, ‘हमारे ऋषियों की बहुत बड़ी विरासत है. हमने योग-आयुर्वेद की डोर बहुत ऊंची उड़ा रखी थी. इसकी डोर तो भगवान के हाथ में है. कुछ लोग इसकी डोर को काटने में लगे पड़े थे. सुप्रीम कोर्ट ने वह केस ही काट दिया. पांच साल के बाद आज हमें खुलकर बोलने का मौका मिला है.’
रामदेव ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य है- सत्यमेव जयते यतो धर्मस्ततो जयः, धर्म की जय हो. ये लोग रोज भ्रम पैदा करते थे, योग-आयुर्वेद को बदनाम करते थे. जितने भी ड्रग माफिया, मेडिकल माफिया थे, सभी की बोलती बंद हो गई.’
‘एक बार फिर योग-आयुर्वेद से जुड़िए’
उन्होंने कहा, ‘मैं सभी से कहना चाहता हूं कि अपने सनातन धर्म से दोबारा जुड़िए, योग-आयुर्वेद से जुड़िए, अपनी जड़ों से जुड़िए और बीमारियों को जड़ से मिटाओ और एक स्वस्थ्य-सुखी-सफल जीवन जीओ. हमें ऋषियों की इतनी बड़ी विरासत मिली है. ये लोग जो रोज योग-आयुर्वेद को कलंकित करते थे उनका पर्दाफाश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया. आपके ऊपर भी कितना भी बड़ा संकट आ जाए, विचलित नहीं होना है. पांच साल तो जरूर लगे लेकिन सत्यमेव जयते.’
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कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की वह याचिका बंद कर दी जिसमें पारंपरिक दवाओं (आयुर्वेद आदि) के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. साथ ही, कोर्ट ने अपना पहले का आदेश भी वापस ले लिया जिसमें विज्ञापनों के लिए सख्त मंजूरी की शर्त लागू थी. IMA ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ याचिका दायर की थी. शुरुआत में कोर्ट ने पतंजलि के विज्ञापनों पर अस्थायी रोक भी लगाई थी और यह सवाल उठाया था कि नियामक संस्थाओं ने पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की.
खबरों के मुताबिक, सुनवाई के दौरान न्यायालय की सहायता कर रहे वकील (Amicus Curiae) ने कहा कि नियम 170 को हटाने से आयुर्वेदिक दवाओं के लिए वही स्थिति हो गई है जैसी एलोपैथिक दवाओं की है. उन्होंने कहा, ’27 अगस्त 2024 के आदेश के बाद बहुत कुछ हुआ है. राज्यों ने इस नियम को लागू किया है.’ नियम 170 को इसलिए लाया गया था ताकि पारंपरिक दवाओं के झूठे और बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों पर रोक लगाई जा सके.
केंद्र ने हटा दिया था नियम 170
फिर आयुष मंत्रालय ने 1 जुलाई 2024 को एक अधिसूचना जारी कर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 को हटा दिया. इस नियम के तहत आयुर्वेद या यूनानी दवाओं के विज्ञापनों को छापने से पहले राज्य की लाइसेंसिंग अथॉरिटी से मंजूरी लेना जरूरी था. अगस्त 2024 में, आयुष मंत्रालय की इस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच के सामने चुनौती दी गई. तब कोर्ट ने नियम 170 को हटाने पर स्टे (रोक) लगा दी थी, यानी विज्ञापन से पहले राज्य की मंजूरी लेने की बाध्यता मामले के दौरान बनी रही.
इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया, ‘राज्य उस नियम को कैसे लागू कर सकते हैं जिसे केंद्र पहले ही हटा चुका है?’ अदालत ने कहा कि यह केस बंद करना सही होगा क्योंकि याचिका में मांगी गई शुरुआती राहतें पहले ही मिल चुकी हैं. यह भी स्पष्ट किया कि अदालत के पास केंद्र की ओर से हटाए गए किसी नियम को दोबारा बहाल करने की शक्ति नहीं है.
अदालत में क्या दलीलें दी गईं?
खबरों के अनुसार, इस मामले में एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि अगस्त 2024 के स्टे को बरकरार रखा जाए. उन्होंने भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों के खतरों पर कोर्ट का ध्यान दिलाया और कहा, ‘बहुत बड़ी संख्या में लोग भोले-भाले होते हैं… आयुर्वेद में कोई भी कह सकता है कि यह दवा बीमारी की गारंटीशुदा इलाज है. लोग उस चक्कर में फंस जाते हैं और जब तक वे एलोपैथिक डॉक्टर के पास जाते हैं, तब तक बीमारी लाइलाज हो जाती है.’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भ्रामक या झूठे मेडिकल दावों को रोकने के लिए पहले से ही मजबूत कानूनी और स्व-नियामक व्यवस्था मौजूद है. इसलिए नियम 170 की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘आम आदमी की समझदारी पर शक नहीं किया जाना चाहिए.’ कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक आयुष दवाओं का उत्पादन वैध है, तब तक उनके विज्ञापन पर पूरी तरह रोक लगाना अनुचित व्यापार व्यवहार माना जाएगा.
कोर्ट ने कहा- जब उत्पादन की अनुमति है तो विज्ञापन की भी हो
कोर्ट ने कहा, ‘जब उत्पादन की अनुमति है, तो विज्ञापन करना एक सामान्य व्यावसायिक प्रथा होगी.’ इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया और केंद्र की अधिसूचना पर लगाया गया पहले का स्टे भी हटा लिया. अदालत ने आदेश में कहा, ‘इसमें कोई विवाद नहीं है कि याचिका में मांगी गई राहतें पहले ही हमारे विभिन्न आदेशों के जरिए दी जा चुकी हैं. चूंकि याचिका की मांगें पूरी हो चुकी हैं, इसलिए अब इस पर और विचार की जरूरत नहीं है इसलिए याचिका बंद की जाती है.’